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________________ १६२] जिनविजय जीवन-कथा पद्य ३ में जो मोहनास्त्र शब्द का प्रयोग किया है उसमें महात्मा जी के मोहनदास नाम का संकेत गभित है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि उनके दिल में देश भक्ति के भाव भरे हुए थे। उन्होंने अपने जीवन काल के अन्तिम वर्षों में अपना एक वसीयतनामा भी सुन्दर ढ़ग से लिखा है जो रूपाहेली के वर्तमान ठाकुर साहब से मुझे देखने को मिला। मैं इस वसीयत नामा को पढ़कर बहुत ही मुग्ध और चकित हुआ । यह केवल वसीयतनामा ही नहीं है अपितु इसमें उन ठाकुर साहब के विद्यानुरागी और सदाचारी जीवन का उत्तम रेखा चित्र भी अंकित हुआ है । इस वसीयतनामें में उनके कुशल व्यावहारिक जीवन के चित्रण के . साथ उनके उदात्त धार्मिक विचार एव आन्तरिक आध्यात्मिक लक्ष्य का भी सुन्दर परिचय मिलता है। इन ठाकुर साहब को पुरावृत्त का भी बहुत शौक था। इसलिये अपने वसीयत नामें के अन्तिम भाग में स्वकीय राठौड़ कुल के पूर्वजों का संक्षिप्त परिचय भी ऐतिहासिक खोज के आधार पर लिख दिया है और अपने जीवन के अन्तिम समय की प्रतीक्षा करते हुये उन्होंने जो भाव प्रकट किये हैं वे बहुत ही मनन करने लायक हैं। हम यहाँ पर उनके लिखे उक्त वसीयतनामा का अन्तिम प्रकरण तद्वत् उधृत कर देना चाहते हैं। इससे उनके प्रान्तरिक विचार और जीवन विषयक कामना का ठीक परिचय मिल सकेगा। "हमारे पूर्वजों का संक्षिप्त वृतान्त लिखने के उपरान्त स्वयं मेरी (चतुरसिंह की) सूक्ष्मतर घटना का परिचय देकर इस इहलौकिक व्यर्थ कथा की समाप्ति करके इस धृष्ट लेखनी को सदा के लिये विश्राम दूंगा। विक्रम संवत १९२० पौष कृष्णा १४ को मेरा जन्म हुआ और वि. सं. १६२६ भाद्रपद कृष्णा १३ को इस ठिकाने का अधिकारी माना गया। जब मेरी आयु पूरी २६ वर्ष की हुई तब जन्म दिन से १० दिन पूर्व उदयपुर में भूल से विष प्रयोग हो गया। जिससे मृत्यु काल की सब. Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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