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जिनविजय जीवन-कथा
और जिस घर में हम यहाँ ठहरे हुए हैं वे हमारे नजदीक के रिश्तेदार हैं इत्यादि । मेरे मन में भी उन साधु महाराज की तपस्या आदि की बातें जानकर कुछ कौतूहल और कुछ जिज्ञासा उत्पन्न हो रही थी अतः उन दम्पति युगल, का यह प्रस्ताव मुझे और भी अधिक रुचिकर हो गया । २-३ दिन में, केवल तपस्वी जी ही के तपस्या के पारणा निमित्त आने वाले भाई-बहिन तो अपने-अपने स्थानों पर चले गए कुछ ५-१० ऐसे परिवार पर्युषणा-पर्व मनाने के लिए वहीं ठहर गए।
तपस्वी जी महाराज जिन्होंने ५२ दिन के उपवास किये थे। वे शरीर से कुछ (नाटे) ठींगने और वर्ण से ठीक श्याम थे। शरीर का गठन उनका मजबूत था उस समय कोई ४०-४५ वर्ष जितनी उम्र उनकी थी। रोज़ एक घंटा सुबह वे धर्मोपदेश दिया करते थे। ५२ दिन के उपवासों में भी उनका यह उपदेश-क्रम बराबर चालू रहता था। अंतिम दिन और पारणा वाले दिन भी उन्होंने वैसा ही उपदेश-क्रम जारी रक्खा । मुझे यह सब जानकर कुछ आश्चर्य और जिज्ञासा बढ़ी। इन साधुओं के जीवन क्रम के बारे में मुझे कोई विशेष परिचय नहीं था इसके पहिले मैंने सुखानन्द जी में खाखी बाबा शिवानन्द भैरव जी के पास शैव दीक्षा लेकर खाखी बाबा हो गया था, जिसका कि वर्णन ऊपर दिया जा चुका है । और उन महंतजी के शिष्यों के जीवन क्रम का मुझे यथ कटु अनुभव हो चुका था परन्तु इन जैन साधुओं का जीवन क्रम मुझे और ही ढंग का लगा और मेरी जिज्ञासा उसके विषय में बढ़ने लगी। मैं समय-समय पर उन साधुओं के स्थानक में जाकर बैठा रहने लगा और उनकी सब प्रकार की दिनचर्या का ध्यान-पूर्वक निरीक्षण करने लगा। मेरे साथ अक्सर वह बहिन भी आती रहती थी जिसके साथ मैं बदनावर से वहां पहुंचा था । एक दिन मैं और वह बहिन तथा जिस कुटुम्ब के साथ हम दिगठान में ठहरे हुए थे उसकी मुखिया बहिन भी साथ थी। इन दो तीन दिनों के बीच में मेरे विषय में बदनावर वाली बहिन और दिगठान वाली बहिन के बीच भी कुछ बातचीत होती
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