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बम्बई रहते समय स्व० श्री मुन्शीजी के साग्रह अनुरोध के कारण सन् १९३६ में भारतीय विद्याभवन की योजना बनाई और बाद में उसके कार्य के संचालन के लिये ऑनरेरि डायरेक्टर का पदभार भी स्वीकार किया। भारतीय विद्याभवन का संचालन करते हुये अनेक प्रकार की साहित्यिक प्रकाशन की प्रवृत्तियां शुरू की तथा अनेक विद्यार्थी और विद्यार्थिनीयों को यूनिवर्सिटी की उच्चतम परीक्षा अर्थात् Ph. D. की डिग्री के लिये अध्ययन एवं संशोधन निमित्त विशिष्ट मार्गदर्शन करता रहा, जिसके परिणाम-स्वरूप अनेक प्रतिभावान विद्वान् तैयार हो गये। इस प्रकार कोई १५ वर्ष पर्यन्त भारतीय विद्याभवन की प्रवृत्तियाँ चलाता रहा।
इसी बीच सन् १९५० में चन्देरिया में "सर्वोदय साधना आश्रम'' की स्थापना की और नूतन संगठित राजस्थान राज्य सरकार के विशेष आग्रह और आह्वान के कारण, जयपुर में, भारतीय विद्याभवन के अनुरूप, "राजस्थान पुरातत्व मन्दिर अर्थात् राजस्थान अोरिएन्टल रीसर्च इन्स्टीट्यूट (राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान) की स्थापना की। सन् १९५० के मई मास में राजस्थान सरकार के तत्कालीन विद्याप्रेमी और विद्वत्ता के पूजक मुख्यमन्त्री श्री हीरालालजी शास्त्री के सादर सानुरोध के कारण मैंने इस नूतन प्रतिष्ठान का संचालन कार्य संभाला । सरकार ने मुझे इसका सम्मान्य संचालक (ऑनरेरि डायरेक्टर) बनाया। मेरी प्रेरणा से सरकार ने इस प्रतिष्ठान के लिये,विशिष्ठ भवन जोधपुर में बनाना तय किया और उसका शिलान्यास, स्व० राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसादजी के
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