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यात्रा करनी शुरू की। जो दांडीकूच के नाम से सारे विश्व में प्रसिद्ध हुई। __मैं भी मई मास में, महात्माजी ही का अनुसरण करता हुआ, गुजरात प्रान्तीय कांग्रेस द्वारा समायोजित एवं नमक सत्याग्रह के लिये सज्जित ७०-७५ चुने हुये सैनिकों का नायक बन कर अहमदाबाद से धरासणा के नमक केन्द्र को लूटने चला । परन्तु अंग्रेजी सरकार ने अहमदाबाद के स्टेशन पर ही अपने साथियों के साथ गिरफ्तार कर ६ महिनों की कड़ी सजा भुगतने का दण्ड देकर क्रमानुसार पहले बम्बई और फिर नासिक की जेल में मुझे भेज दिया । सजा भुगतने पर मैं और मेरे मित्र स्व० श्री कन्हैयालाल मुन्शी एक साथ बम्बई आये। बाद में मैं अपने अहमदाबाद वाले केन्द्र पर पहुँचा ।
उसके बाद सन् १९३२ के प्रारम्भ में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की खास इच्छा से मैं उनके शिक्षणधाम शान्तिनिकेतन चला गया। वहाँ पर जैन संस्कृति और साहित्य के अध्ययन, अध्यापन के निमित्त "जैन चेयर" (जैन शिक्षा पीठ) की स्थापना की। साहित्य के प्रकाशन की दृष्टी से "सिंघी जैन ग्रन्थमाला" नामक विशिष्ट कोटि की ग्रन्थावलि का प्रकाशन कार्य चालू किया। यह ग्रन्थावलि मेरे तत्वावधान में आज पर्यन्त चालू है। भारतीय प्राचीन साहित्य को प्रकाश में लाने वाली यह एक सुप्रतिष्ठित ग्रन्थावलि मानी गई है।
शान्ति-निकेतन से ४-५ वर्ष बाद मैंने अपना कार्यकेन्द्र अहमदाबाद और बम्बई बनाया ।
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