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. जिनविजय जीवन-कथा
कल्प-सूत्र आदि बांचना सीख लेना चाहता है अतः अभी इसकी मर्जी मंडप्या ही में रहने की है। कुछ दिन बाद बानेण भी आकर तुमसे मिलना चाहता है इत्यादि । सुनकर सेवक जी बोले ठीक है मैं ऐसा ही उससे कह दूंगा। ऐसी बातें करते हुए हम फिर ज्ञानचन्द जी के घर पहुँचे और भोजन आदि किया। दोपहर बाद सेवकजी बानेण के लिए रवाना हो गये।
__ मैंने दूसरे ही दिन सवेरे खेत की रखवाली का काम सम्भाला । ज्ञानचन्द जी का खेत उनके घर से कोई प्राधा पौना मील के फांसले पर था। सुबह उठकर मैं खेत पर चला जाता और कुसी, फावड़ा आदि लेकर खेत के आस पास जो काँटों वाली झाड़ियां उग रही थी उनको काटना और खोदकर जमीन साफ करने का काम शुरू किया। ज्ञानचन्द जी के पास दो तीन गायें थी उनको भी साथ ले जाता और चारा चराया करता। दोपहर को आकर मकान पर रोटी खा लेता और फिर वहीं खेत पर चला जाता जो फिर शाम को सात आठ बजे वापस मकान पर आ जाता । यति ज्ञानचन्द जी की पत्नि कुछ सुशील थी । उसका व्यवहार मेरे साथ अच्छा रहता था। कभी २ ज्ञानचन्द जी खेत पर चले आते और दोपहर के समय की रोटी भी मेरे लिए ले आते । ज्ञानचंदजी जरा आराम प्रिय प्रकृति के थे। उनको खेती का काम स्वयं करना पसन्द नहीं था ना ही वे अपनी पत्नि से भी वैसी कुछ मजदूरी का काम कराना पसन्द करते थे । गाने बजाने का उनको अधिक शौक था इसलिए वे प्रायः मकान पर दो तीन घन्टे इसमें बिताया करते थे। जैसा कि बहुत से यतियों का लोगों को दवा-दारू आदि देने का खास व्यवसाय होता है, वैसा ये कुछ नहीं करते थे । पत्ते बाजी खेलने का इनको बहुत शौक था इसलिए ये अपने मकान पर दो चार व्यक्तियों के साथ बैठे २ पत्ते-बाजी खेला करते थे। शतरंज का खेलना भी इनको प्रिय था। परन्तु वह तभी खेलते जब कोई उसके खेलने वाला अच्छा व्यक्ति आ जाता । दोपहर बाद तीन चार बजे वे प्रायः भांग भी पीया करते थे।
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