SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंडप्या निवास-जैन यतिवेश धारण . [१३९ यों बोलने चालने में अच्छे व्यावहारिक थे। उनके श्वसुर यति जो टोंक में रहते थे वे काफ़ी मालदार थे, उनकी तरफ से ज्ञानचन्द जी की पत्नि को कपड़े लत्ते आदि की बहुत मदद मिलती रहती थी। दो तीन महीने में उनका एक चक्कर मंडप्या में अवश्य हो जाता था और वे हर समय पांच पच्चीस रुपये ज्ञानचन्द जी को दे जाते थे। रतलाम वाले उनके पिता की तरफ से उनको कोई आर्थिक सहायता मिलती हो ऐसा अनुभव नहीं हुआ। ज्ञानचन्द जी का अपने श्वसुर तरफ जितना आकर्षण था वंसा पिता की तरफ नहीं था। उसका कारण शायद यह था कि पिता की स्त्री कोई अन्य वर्ग की थी। उनके पिता तो जमीन-जायदाद आदि की सम्भाल लेने के लिए कभी २ मंडप्या चले आते थे परन्तु उनकी स्त्री वहां कभी नहीं पाती थी। इसी तरह ज्ञानचन्द जी की स्त्री भी कभी अपनी सास के पास नहीं जाती थी। ये सब बातें मुझे शनैः शनैः ज्ञानचन्द जी की पत्नि से मालूम हुई थी। शरद-पूर्णिमा की चांदनी कि रात में मक्का काटने का मुहुर्त किया गया। मैं पिछले साल जब बानेण था तब यह काम सीख लिया था। पर बानेण में तो इस काम में धनचन्द जी और उनकी स्त्री का ही मुख्य कार्य था । मैं तो उस समय सीखाऊ मजदूर था। बानेण में तो एक खेत में जब मक्का या ज्वार की बुवाई की तब धनचन्द जी के पास कोई बैल-जोड़ी न होने से और किराये की सामग्री लाने का साधन न होने से हल के खींचने का काम मैंने और धनचन्द जी की स्त्री ने बैल की तरह स्वयं किया । बानेण का वह खेत शायद धनचंद जी ने स्वर्गस्थ गुरु महाराज देवीहँस जी के पैसे से खरीदा था और उसकी रजिस्ट्री भी मेरे नाम से करायी गई थी। मंडप्या में ज्ञानचन्द जी के खेत में जो स्वेच्छा से मैंने मजदूरी करनी स्वीकार की उसमें मेरे साथी दो तीन मजदूर वैसा ही मजदूरी पेशा करने वाले थे। तीन चार दिन में मक्कई काटने का काम पूरा हुआ । दिवाली के नजदीक ज्ञानचन्द जी को किसी गांव के जैन भाईयों की ओर से पूजा आदि उत्सव में भाग लेने के लिए बुलावा आया इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy