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________________ मण्डप्या निवास-जैन-यतिवेश धारण [३१३५ श्री देवीहंस जी के साथ बानेण आया था। जब धनचन्द जी यति ने देवीहंस जी महाराज के स्वर्गवास निमित जो भोजन समारंम्भ किया था उसमें इन श्री पूज्य जी को नहीं बुलाया गया था। इसलिए ये धनचन्द जी से कुछ नाराज थे। इन्होंने सेवकजी से कहा कि रूपाहेली वाले यति जी महाराज के पास बहुत धन था जो धनचन्द ने सब दबा लिया है। और अब इस लड़के को वहां से निकाल देना चाहता है। सेवकजी ने इसके जवाब में क्या कहा सो तो मुझे ठीक ज्ञात नहीं हुआ; परन्तु सेवकजी ने दो चार बार उनसे यही बात कही कि यह लड़का अच्छा बुद्धिमान है और इसकी विद्या पढ़ने की बहुत अभिलाषा है, सो कहां रहकर यह पढ़ सकता है. इसकी कोई सलाह आप दें। श्री पूज्य जी ने कहा कि मंडप्या वाला यति ज्ञानचन्द अच्छा पढ़ा लिखा यति है और व्यवहार में भी अच्छा है वह हर साल चातुरमास के समय में मालवा और गुजरात के अच्छे गांवों में जाता रहता है । और उधर के श्रावकों को व्याख्यान आदि सुनाता रहता है। इससे उसकी जान पहचान बहुत अच्छे श्रावकों के साथ रहती है । यदि उसके साथ इस लड़के का रहना हो जाय तो इसकी पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था वह कहीं कर देगा, गुजरात या काठियावाड़ की किसी अच्छी पाठशाला में इसकी भर्ती हो जाय तो यह अच्छी तरह पढ़ सकेगा। बानेण में रहने से तो इसका कुछ भला नहीं होगा इत्यादि । उसी दिन शाम को रतलाम वाले वे यति जी इन श्री पूज्य जी से मिलने आये पोर वहां पर परस्पर मेरे विषय में भी कुछ चर्चा हुई श्री पूज्य जी ने उनसे कहा कि मंडप्या में ज्ञानचंद जी के पास यह लड़का रहे तो अच्छा है इत्यादि बातें हुई रतलाम वाले यति जी को भी वह बात पसन्द आई, और वे बोले कि आज ही रात की गाड़ी से मैं मंडप्या जा रहा हूँ इसलिए मैं इसको साथ ले जाऊंगा सेवक जी जो इन सब बातों की मध्यवर्ती कड़ी थे उनको भी यह बात पसन्द आई और मुझसे कहने लगे कि किसन भैया अपन मंडप्या चलें । मैंने उसमें अपनी सम्मति दिखलाई क्योंकि मंडप्या वाले जति जी के साथ मेरा भन्छा परिचय हो गया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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