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________________ १३४] जिनविजय जीवन - कथा - अपने अधिकार का हिस्सा लेने के लिए मन्दसौर जाया करते थे । श्री पूज्य जी बड़े चालाक और रुवाबदार थे । उनकी वैद्य की खूब चलती थी और कई स्थानों पर जमीन, जायदाद वगैरह भी थी। उनका मन्दसौर में एक अच्छा और पक्का बना हुआ मकान था। इनके पास एक दो घोड़ों की बग्गी तथा सवारी के दो तीन तांगे भी थे । तांगे उनके किराये पर चलते रहते थे । जरूरत पड़ने पर तांगे के घोड़ों को बग्गी में जोड़. कर उससे भी किराया पैदा कर लिया करते थे । आवश्यकता होने पर वे स्वयं बग्गी में बैठकर गांव में निकला करते थे, मकान पर दो तीन नौकर, नौकरानियां थी। कुछ गायें भैसे भी थी जिनका काफी दूध होता रहता था । अपनी आवश्यकता के सिवाय का दूध हलवाईयों को बेच . दिया जाता था । उनके घर में एक प्रौढ़ उम्र वाली हृष्ट-पुष्ट और दिखने में अच्छी स्त्री थी। यह तो मुझे ज्ञात नहीं हुआ की वह परि. णिता थी या रक्षिता । पर उनको कोई संतान नहीं थी । उनके पास एक छोटा बच्चा था जिसकी उम्र कोई सात, आठ वर्ष की थी । वह शायद उनका पालीत पुत्र था। श्री पूज्य जी का घर दुमंजला था, नीचे के मंजिल में उनका औषधालय चलता था। ऊपर के मंजिल में उनका निज़ का निवास था । उनके ऊपर वाले कमरे में एक पुरानी टाईप की बड़ी सी घड़ी लगी हुई थी, उसमें आधा घन्टा और घन्टा के बजने के जो टंकारे लगते थे उसकी आवाज बड़ी मधुर लगती थी मैंने अपनी जिन्दगी में उसके पहले कोई ऐसी घड़ी नहीं देखी थी, जिससे उस घड़ी को देखकर भौर उसकी वह विचित्र भंकार सुनकर प्राश्चर्य मय आनन्द होता रहा । श्री पूज्य जी ने एक छोटे से अलग कमरे में बिठाकर हमको भोजन कराया । भोजन नौकरानी ने परोसा था। पहले भी मैं जब धनचन्द यति के साथ वहां गया था तब भी उसी कमरे में इसी तरह हमको जिमाया गया था । श्री पूज्य जी ने मेरे विषय में सेवकजी से कुछ बातें की। श्री पूज्य जी को ये मालूम था कि मैं रूपाहेली से स्वर्गीय यति जी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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