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________________ मण्डप्या निवास जैन यतिवेश धारण [ १३३ I जी भी अच्छे सम्पन्न थे । और वे अपनी लड़की को लेने, रखने मंडप्या प्राते रहते थे । उनके पास एक बहुत अच्छी घोड़ी थी उसी पर सवार होकर टोंक से मंडप्या आते जाते थे । वे यति जी अच्छे कदावर और रूपरंग से खूबसूरत थे । उनकी बड़ी लम्बी मूछें थी । उनके चेहरे का मुझे अब भी अच्छा स्मरण है । ऐसी बातें करते हुए हम रतलाम स्टेशन पर पहुँचे । सेवकजी मंडव्या वाले यति ज्ञानचन्द जी से अच्छे परिचित थे, और वे उनके गुरु को भी अच्छी तरह जानते थे । रतलाम में उन यति जी का घर ढूंढ लिया वहां जाकर पूछा तो मालूम हुआ कि वे यति जी मन्दसौर गये हुए हैं । मन्दसौर में एक यति जी रहते थे, जो बानेण वाले धनचन्द जी यति के गच्छ के श्री पूज्य कहलाते थे । उनका स्थान मैंने एक दफ़े धनचन्द जी के साथ देखा था । सेवक जी बोले अपन यहां से मन्दसौर चलें । फिर हम गाड़ी में बैठकर मन्दसौर गये। उन श्री पूज्य जी का मकान मन्दसौर की जनकुपुरा नामक बस्ती में था । वे श्री पूज्य जी अच्छे वैद्य थे इसलिए मन्दसौर में उनकी काफ़ी प्रसिद्धि थी । हम उनके मकान पर पहुँचे तो उन्होंने मुझे तुरन्त पहचान लिया । और पूछने लगे कि तुम यहां कैसे आये । सेवकजी ने बात बना कर कहा कि हम लोग नवरात्रि का उत्सव मनाने उज्जैए की चौंसठ जोगनियों माता की पूजा करने गये थे । उज्जैन का दशहरा का उत्सव भी देखना था। इसलिए भाई किशन लाल जी के साथ हम उज्जैन गये, और वापस लौटते हुए यहां आपसे भी मिलने आ गये हैं । उन श्री पूज्य जी का नाम पन्नालाल जी था । वे जैन संप्रदाय के खरतर गच्छीय पिप्पलिया शाखा के श्री पूज्य कहलाते थे । बानेण वाले धनचन्द जी यति भी उसी शाखा के थे । धनचन्द जी के पूर्वज यतियों के साथ मन्दसौर वाले श्री पुज्य जी का ऐसा कोई व्यवहार बन्धा हुआ या जिससे कुछ गांवों के मन्दिरों और उपाश्रयों पर बानेण वाला का अधिकार माना जाता था। इसलिए साल में एक दो बार धनचन्द जी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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