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श्री सुखानन्द जी का - प्रवास और भैरवी दीक्षा
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जिसे रुद्र भैरव विकराल भैरव के नाम से संबोधित किये करता था ) यहां आयगा और दो चार खाखी गुंडों को साथ में लाकर कुछ तूफान मचाना चाहता है । इसलिए हम कुछ अपनी व्यवस्था करना चाहते हैं । खाखी महाराज की यह इच्छा है कि किशन भैरव जी को अभी कहीं और जगह भेज दिया जाय । ये और जो बाबा लोग है । उनका कोई विश्वास नहीं है । में प्रोर रुद्र भैरव जी दोनों कुछ सामान लेकर मथुरा जाना चाहते हैं जहाँ हमारे कुछ अच्छे रिश्तेदार हैं और वहां से हम दो चार अच्छे मजबूत चौंबों को ले आना चाहते हैं । जो इस दुष्ट शिष्य को ठीक कर सकें ।
दूसरे दिन सबेरे जल्दी मैं जब शौच जाकर आया और पास वाले कुएं पर बैठकर स्नान करने की तैयारी कर रहा था तो सेवक जी मेरे पास आये और मुझसे वे सब वातें करने लगे । सेवक जी यह भी कहने लगे कि खाखी महाराज की यह इच्छा है कि तुम भी कामदार जी के साथ मथुरा चले जाओ वहाँ पर तुम्हारे लिए सब इन्तजाम करा दिया जायगा । उस समय मैं कुछ निश्चय नही कर सका। मैंने सेवक जी से कहा कि एक दो दिन ठहरकर विचार करना ठीक होगा। एक दो दिन इसी उलझन में बीते । तीसरे या चौथे दिन मथुरा से चार पाँच अच्छे मजबूत लट्ठ बाज चौबे वहाँ आ पहुँचे । इसकी जानकारी उस विक्रान्त भैरव को भी हो गई क्योंकि उसके साथ आये हुए एक दो गुंडे से खाखी साधु सदा हमारे मठ में आया करते थे और इधर उधर की डराने धमकाने की भी बातें वे किया करते थे । एक दिन सवेरे जब रूद्र भैरव अकेला शौच के लिए बाहर गया हुआ था तो विक्रांत भैरव के दो साधुओं ने जा घेरा और उसे बहुत कुछ बुरा-भला कहा और उसे यह भी कहा कि तू अपने गुरु को समझादे कि वह अपने चेले को समझा बुझा कर अपने पास बुला ले नहीं तो तेरी और तेरे गुरु की खैरियत नहीं है । फिर रूद्र भैरव ने ग्राकर अपने गुरुजी से ये सब बातें कह सुनाई । उसी दिन रात को कामदार जी और रूद्र भैरव तो मथुरा से प्राये हुए तीन आदमियों को साथ लेकर खाखी महाराज के मूल्यवान
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