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जिनविजय जीवन-कथा यह खाखी का स्वांग धारण करने में मैंने गलती की है । और जैसा कि यहाँ का वातावरण बन रहा है शायद मेरा जीवन भी खतरे में पड़ सकता है । मुझे धीरे २ मालूम होने लगा कि खाखी महाराज का वह दुष्ट चेला इनकी घात में फिर रहा है। मौका मिलने पर वह इनको किसी तरह खत्म कर इनका धन कब्जे कर लेना चाहता है । वैसी स्थिति में मुझ पर भी वह क्या संकट नहीं ला सकता ? वे बानेण वाले सेवकजी मुझसे कह गये थे कि तुम्हारे उज्जैन पहुंचने पर मैं वहां मिलने आ जाऊँगा। उनकी याद मुझे बराबर होती रही क्योंकि उस समय मेरे लिए और कोई व्यक्ति मौजूद नहीं था जिसके सामने मैं अपनी यह मानसिक दुरचिन्ता व्यक्त कर सकू और कुछ सलाह ले सकूँ । ... अकस्मात श्राद्ध पक्ष का अन्तिम दिन जब था तब सायंकाल के समय वे सेवकजी हमारे पास पहुँचे । आते ही उन्होंने कहा कि श्रावणभादी के दो महीने बानेण में अपने खेतों वगैरह की बुवाई आदि के काम में लगा रहने से इससे पहले मेरा आना न हो सका। अब कल से नवरात्रि प्रारम्भ हो रही है इसलिये मैंने सोचा कि उज्जैन में जाकर चौंसठ जोगनियों के सामने नवरात्री की पूजा आदि करूँ, और तुमसे भी मिल लूं। बाद में सायंकाल के आरती के समय हम खाखी महाराज के सन्मुख नियमानुसार उपस्थित हुए और आरती की पूजा विधि में भाग लिया। बाद में सेवकजी ने खाखी महाराज को साष्टांग प्रणाम किया । तब सेवकजी को अनुभव हुआ कि खाखी महाराज का शरीर काफ़ी उतर गया है और चिन्ता से बहुत जर्जरित हो रहे हैं । खाखी महाराज ने सामान्य रूप से उनसे पूछा की तुम कब आये ? सेवकजी ने यथा योग्य उत्तर दिया और कुछ वे नहीं बोले ।।
बाद में सेवकजी कामदार जी से मिले तब उनको वहां पर दो महीने में होने वाली सारी परिस्थिति की जानकारी हुई ।
कामदार जी ने सेवकजी से यह भी कहा कि दो चार दिन में शायद बाबाजी का वह शिष्य जिसका नाम विक्रांत भैरव था। (और
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