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________________ १२८] जिनविजय जीवन-कथा जो बक्से थे उनको लेकर मथुरा के लिए खाना हो गये । हमको भी इसकी कुछ मालूम नहीं पड़ने दी । दूसरे दिन सेवक जी जब खाखी महाराज से मिले तो उनसे उन्होंने कहा कि अभी यहां का मामला कुछ गड़बड़ है सो किसन भैरव को तुम किसी अन्य जगह ले जाओ। मामला शांत होने पर हम फिर अपने पास बुला लेंगे। हमारी राय है कि किसन भैरव अभी मथुरा चला जाय, वहां भी हमारा मठ है और दो तीन साधु संत वहाँ रहते हैं । वे पंडित जी भी मथुरा ही में रहते हैं। हमारे लिख देने से वे इसकी पढ़ाई का काम चालू कर देंगे। इसको वहां पर किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होगी। तुम स्वयं जाकर इसे वहां छोड़ आओ। - सेवक जी की यह बात सुनकर मैंने उनसे कहा कि मुझे अब इन बाबा जोगड़ों की संगति अच्छी नहीं लगती। इन चार महीनों में मैंने इनको अच्छी तरह समझ लिया है। तुम्हारे ही कहने से मैं इनकी जमात में शामिल हो गया । यद्यपि खाखी महाराज बहुत भले हैं और इनका स्नेह भी मुझ पर अधिक है । यदि इनकी जमात की ऐसी बुरी रीत-भात न होती और ये अकेले ही होते तो मैं इनकी सेवा करता परन्तु इनकी परिस्थिति तो बहुत विषम हैं, अतः मैं इस स्वाँग को छोड़कर निकल जाना चाहता हूँ। तुम्हारे ही कहने से मैंने यह स्वांग धारण किया था और अब तुम्ही मुझे इससे छुड़ाकर बाहर निकाल दो। सेवक जी की मेरी तरफ बहुत सहानुभूति थी, और वहां की परिस्थिति देखकर उनको भी विश्वास हो गया कि किसन का इस जमात में रहना अच्छा नहीं है । तब उन्होंने कहा कि हम कल सवेरे ही यहाँ से कहीं चल देंगे। उधर उस विक्रांत भैरव को यह पता लग गया कि खाखी महाराज ने मथुरा से कुछ लठ्ठबाज चौबों को बुलाया है और उनके साथ रूद्र भैरव के हाथों अपना कीमती सामान कहीं भिजवा दिया है। तथा दो तीन चौबे भी अपनी रक्षा के लिए मठ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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