________________
१२०]
जिनविजय जीवन-कथा
था और कुछ भजन कीर्तन सिखाया करते थे । उन बाबाओं में भंग पीने वाले विशेष थे । कुछ गांजा भी पीने वाले थे । तमाखू की चिलम तो सभी अच्छी तरह दिन-रात पीते रहते थे। दिन में दो तीन दफ़े स्नान करना, दो तीन दफ़े भभूत लगाना यह उनकी मुख्य दिनचर्या थी । सुबह शाम खाखी महाराज जब पूजा आरती करते तब वे सब वहां उपस्थित हो जाते और खाखी महाराज को साष्टांग दंडवत् प्रणाम करते । इसके सिवाय बाबाजी महाराज के पास अधिक आने जाने का उन्हें कोई कारण नहीं था । वे प्रायः बिना किसी श्रम के अपनी अच्छी तरह उदर - पूर्ति करने की दृष्टि से ही खाखी का स्वांग धारण किये हुए थे । न उनमें पढ़ने लिखने का कोई शौक था, न किसी प्रकार की विचार गोष्ठी के सुनने का ही रस था । न उनको अपने जीवन के विषय में ही कोई कल्पना थी । न किसी प्रकार का कोई लक्ष्य ही था । खूब अच्छी तरह खाना, सोते रहना और खाखी बाबा के जैसों के साथ देश देशान्तरों में घूमते फिरना ।
1
इनमें आचार विषयक कोई भावना नहीं थी । प्रसंग न मिलने से ये कुछ अनाचार नहीं कर पाते थे । पर उसकी ताक में सदा रहा करते थे । परस्पर अश्लील व्यवहार भी करने में इनको कोई लज्जा महसूस नहीं होती थी । मेरा इनके साथ उठने बैठने का कोई प्रसंग नहीं रहता था । मेरा परिचय केवल रूद्र भैरव के साथ ही था । वह कुछ शिष्ट और संस्कारी था । व्याकरण आदि तो वह कुछ नहीं पढ़ा था परन्तु हिन्दी अच्छी तरह बोलना पढ़ना जानता था । संप्रदाय के उपयोगी भजन, कीर्तन, स्तुति, स्तोत्र आदि इसको बहुत से याद थे और जो साधु थे उन पर इसका काफी प्रभाव था । उन सबको वह धमकाता रहता था । इसलिए वे सब इससे डरते थे । खाखी महाराज का केवल इसी पर विश्वास था और यह भी उन पर पूरी श्रद्धा रखता था ।
उज्जैन के उस मठ में स्थायी रूप से रहने वाले जो दो तीन खाखी बाबा थे उनका अपना कारोबार अलग ही था । उनकी वहां की जो स्थायी आमदनी थी उसका प्रबन्ध उन्हीं के हाथ में था । उनका खान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org