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________________ ११८] जिनविजय जीवन-कथा से सभी कोई ऐसे मस्त नहीं थे। अनेकों के विलक्षण स्वभाव और चरित्र थे । महन्त जी महाराज जी के समय समय पर निकलने वाले उद्गारों से ज्ञात होता रहता था कि उनके पास दीक्षा लेने वाले मेरे जैसे कई शिष्य ऐसे निकले थे कि जो खाखी महाराज की अनेक मूल्यवान् वस्तुएं उड़ाकर ले भागे। कई शिष्य चांदी के थाल, लोटे, गिलास, कटौरियां आदि गायब कर गये थे । कई शिष्य धूप-दीप, आरती आदि के चांदी के उपकरण ले भागे । कई शिष्य भेंट के समय जमा होने वाले रुपये, पैसों को दबा गये । एक दो शिष्य तो नकदी रुपयों के बक्से तक उठा ले गये । इस प्रकार के अनुभव के कारण खाखी महाराज अपने साथ रहने वाले शिष्यों और बाबाओं से हमेशा बहुत सतर्क रहते थे। उस समय साथ में जो सात, आठ हम जैसे खाखी स्वांग धारी व्यक्ति थे उनमें से दो तीन को छोड़कर अन्यों पर उनका खास विश्वास नहीं था। परन्तु साथ में आठ, दस, बारह खाखी स्वांगधारी बाबाओं की जमात न हो तो, लोगों पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए "जमात करामात है।' इस उक्ति के अनुरूप वे अपने साथ ऐसे व्यक्तियों को रखने में मजबूर रहते थे। इस परिस्थिति को लक्ष्य में रखकर खाखी महाराज ने उज्जैन में अपने निवास का प्रबन्ध किया था। उक्त मठ में तीन चार जो अच्छे पक्के कमरे थे उनमें सब सामान जमवाया गया। एक कमरा खाखी महाराज के सोने उठने बैठने के लिए था । दूसरे कमरे में देवमूर्ति के रखने का तथा उक्त कीमती सामान रखने की व्यवस्था की गई । एक कमरे में खाने-पीने का सब सामान रखा गया। एक कमरे में रूद्र भैरव जी और मेरे लिए सोने बैठने का इन्तजाम हुआ। और बारहदरी जैसे चार पांच दालान थे उनमें अन्य साधु सन्तों और कर्मचारियों के बिस्तर आदि लगे । मठ में ऊपर भी कुछ कोठरियां सी थी। उनमें भी किसी के ठहरने आदि का प्रबन्ध किया गया। साथ में जो पंडितजी पढ़ाने वाले थे उनको वहीं निवास की जगह दी गई। आषाढी एकादशी के बाद ही जोरों की वर्षा होनी शुरू हुई । तीन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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