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________________ श्री सुखानन्द जी का-प्रवास और भैरवी-दीक्षा [११७ उसी कमंडलु को साथ ले जाते । जरूरत पड़ने पर चेला रूद्र भैरव को चाबीयां देते और अपनी आँखों के सम्मुख ही बक्से को खुलवाते और बन्द करवाते । भेंट-पूजा आदि के कारण जब ताबें या चाँदी के सिक्कों का ढेर जमा हो जाता तो उनको अच्छी तरह गिनवाकर और बीजक बनाकर रूद्र भैरव जी द्वारा कामदार जी को दिलवाकर कह देते कि रुपयों, पैसों का ढेर बहुत हो गया है । इसलिए सराफ की दुकान पर जाकर इनके मूल्य की सोने की मुहरें अशर्फी आदि ले आओ। और फिर उनको गिनकर थैलियों में बांधकर बक्से में रखवा लेते । ये बक्से सदा उनके निज के डेरे ही में रखे रहते थे । वे हमेशा एक काठ की चौकी पर सोया करते थे। उसी चौकी के नीचे ये बक्से रखे रहते थे । मुसाफरी में उनकी सवारी के हाथी के हौदे के बीच में ये बक्से रख दिये जाते थे । खाखी बाबा प्रायः अपने डेरे से कहीं बाहर नहीं जाते थे । केवल प्रातःकाल सूर्योदय के पहले वे शौच के लिए बाहर जाते थे तब रूद्र भैरव या कामदार जी को डेरे की निगरानी के लिए रख जाते थे। सुना जाता था कि उज्जैन में जब उक्त प्रकार से खाकी महाराज पहुँचे तो उनके पास पच्चीस तीस हजार का नगदी माल था। अन्यान्य चेलों में इस बात की कभी कभी काना फूसी हुआ करती थी। उक्त रूप से नगद रकम के सिवाय खाखी महाराज के पास चांदी की बनी हई बहत सी चीजें थी। थाल, लोटे, गिलास, सुराही आदि सैकड़ों तोलों की चांदी की वजनी चीजें थी। पूजा वाली देवता की मूर्ति शिवलिंग उसका सिंहासन तथा धूप-दीप, आरती आदि के उपकरण भी चांदी के बने हुए थे। इस प्रकार कई हजार तोलों भरी चांदी का सामान उनके पास था । पर उनके साथ रहने वाले हमारे जैसे बने हुए खाखी बाबों के पास लोहे का चीमटा और पीतल का जूना पुराना कमंडलु एवम् छोटे से लोहे के त्रिशूल के सिवाय तार मात्र कोई वस्तु नहीं थी। हम छोटा सा लंगोट पहने हुए और शरीर पर भभूत रमाये हए 'ओम नमः शिवाय' का जाप जपने में मस्त रहते थे । परन्तु हममे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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