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________________ ११४] जिनविजय जीवन-कथा कार्य चालू किया। कुछ दिन बाद महीम्न स्तोत्र का पाठ भी शुरू कराया। मैं रोज एक दो श्लोक कंठस्थ कर लिया करता था। संध्या या प्रातःकाल जब भी समय मिलता बाबाजी महाराज मुझसे मैंने कल क्या पढ़ा है यह पूछ लेते थे और जो मैं कंठस्थ कर लेता उसे सुन भी लेते थे । बाबा जी कहते रहते थे कि मुसाफिरी में पढ़ना इसी तरह होता रहता है । जब कहीं जाकर महीने दो महीने जमकर रहेंगे तब पढ़ाई ठीक अच्छी तरह चलेगी। ___यों हमारी जमात का प्रवास धीरे २ आगे बढ़ रहा था कहीं दो दिन का, कहीं तीन दिन का, कहीं चार दिन का भी पड़ाव होता था। नीमच से चलकर मन्दसौर, प्रतापगढ़, जावरा, सैलाना, रतलाम आदि बड़े गांवों में भी जमात का पड़ाव रहा। कई जगह बाबा जी के जागीरदार वगैरह भी भक्त होते थे इसलिए वे यथा स्थान बाबा जी के दर्शन करने आते थे और कुछ भेंट पूजा चढ़ाते थे। इस तरह बाबा जी के सन्मुख रोज पच्चीस-पचास रुपये जमा होते रहते थे जिनको रूद्र भैरव जी रोज रात को सम्भाल कर गिन कर तथा उनका बीजक बनाकर खास सन्दूक में रख लेते थे । खाने-पीने का जो सामान ग्राम निवासी जनों की तरफ से मिलता था उसका हिसाब कामदार जी रखते थे और उसका प्रबन्ध भी वे ही करते थे। आटा-दाल, चावल, घी, गुड़, शक्कर आदि खाद्य, सामग्री का थोक काफी साथ में रहता था। एक दो गाड़ियाँ उसी के लिए रहती थी । पशुओं के लिए दाना, चारा आदि का प्रबन्ध ग्राम निवासी जनों की तरफ से रहता था। खाखी महाराज के व्यवहार से मुझे लगने लगा कि उनका लोगों पर काफी प्रभाव है और जगह जगह उनको मानने वाले अनेक भक्त रहते हैं। वे अपने भक्त जनों को कंठी बन्धवाया करते थे और कुछ डोरे-धागे आदि का भी प्रयोग करते रहते थे । खास करके बहुत सी स्त्रियां जो अच्छे घराने की होती थीं और बड़ी उम्र तक भी जिनको कोई बाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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