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श्री सुखानन्द जी का प्रवास और भैरवी दीक्षा
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बच्चा नहीं होता था वे स्त्रियां सन्तान की कामना की दृष्टि से अकसर उनके पास आती रहती थी और कुछ भेंट पूजा चढ़ा कर उनसे अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करती रहती थीं। खाखी महाराज उनको किसी न किसी प्रकार का आशीर्वाद देकर तथा मादलिया, ताबीज आदि बंधवाकर उनको संतुष्ट करते रहते थे। गांवों की अपेक्षा शहरों में ऐसी स्त्रियां बहुत आती रहती थीं। ___इस तरह कोई डेढ़, पौने दो महीने के प्रवास के बाद आषाढ़ मास की एकादशी के दो तीन दिन पहले हम लोग उज्जैन पहुंचे और क्षिप्रा नदी के किनारे एक खास स्थान पर हमारा पड़ाव पड़ा। उज्जैन में वैसे और भी कुछ खाखी बाबाओं की जमातें पड़ी हई थीं । खाखी महाराज ने चौमासे के दो महीने उज्जन ही में बिताने का निश्चय किया था । अतः काफिले में जो ऊंट, घोड़े-गाड़ियां आदि थी उनको इधर-उधर भेज दिया गया केवल एक हाथी और एक ऊंट तथा एक घोड़ी रखली गयी थी उसके साथ नोकर चाकर जो थे उन्हें भी रजा दे दी गयी केवल आठ दस सन्यस्त बाबा और तीन चार कर्मचारी रहे थे । खाखी महाराज के संप्रदाय का यह निज का वहाँ पर एक बड़ा सा स्थान था जिसमें धर्मशाला जैसी बारहदरियां बनी हुई थी। दो तीन बड़े कमरे थे बीच में अच्छा मैदान था उसके मध्य में छोटा सा शिव मंदिर बना हुआ था। इस स्थान में दो तीन महीने रहने का निश्चय हआ था। अतः उस प्रकार की सब सामग्री वहां जमा करली गयी थी। प्रवास में आते हुए खाद्य सामग्री भी बहुत बड़ी तादाद में एकत्र करली गयी थी जो कई गाडियों में भरकर वहां लायी गई थीं। उस स्थान की देखभाल रखने वाले तथा व्यवस्था करने वाले दो तीन खाखी सन्त वहीं रहते थे और उस स्थान का सारा प्रबन्ध उन्हीं के हाथ में था। वे खाखी बाबा हमारे महन्त जी के ही आमनाय वाले और उनसे विशिष्ठ सम्बन्धित थे । इसलिए रूद्र भैरव जी ने उनको बुलाकर अपने डेरे आदि का सारा प्रबन्ध कैसे किया जाय वह समझाया। एक दो दिन में वहाँ की सारी व्यवस्था जम गई । आषाढी एकादशी के दिन
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