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________________ ११०] जिन विजय जीवन कथा महाराज के लिए भोजन का थाल लगा हुआ था उसी से थोड़ी दूर पर मेरे लिए भी एक थाली रखी हुई थी । खाखी महाराज ने पूछा कि क्यों बच्चा पढ़ाई का काम शुरू हो गया है न ? मैंने हाथ जोड़कर कहा महाराज पंडित जी ने आज मुझे सारस्वत व्याकरण का प्रथम श्लोक पढ़ाया है । बाबाजी बोले कि क्या तुमने वह श्लोक याद कर लिया है ? मैंने कहा जी हां। तब वे बोले अच्छा बोलो तो वह श्लोक । मैंने तुरन्त ही वह श्लोक सुना दिया जिसे सुनकर वे बड़े प्रसन्न हुए और नाम लेकर बोले कि किशन, तुम्हारी बुद्धि तो बहुत अच्छी मालूम देती है ? तुम तो पढ़कर बहुत होशियार हो जाओगे | शंकर भगवान की बड़ी कृपा है । यह कहकर उन्होंने भोजन कर लेने के लिए आज्ञा दी, और स्वयं भी भोजन करना शुरू किया भोजन सामग्री में मालपुए और उड़द चने की दाल मुख्य थी । मेरा स्वभाव बचपन ही से जल्दी २ खाने का पड़ गया था और भोजन भी मेरा साधारणतया स्वल्प रहता था मेरी थाली में कोई आठ दस मालपुए रखे हुए थे और बड़ा-सा कठोरा भरकर दाल रखी हुई थी उसे देखकर मैंने बाबा जी से कहा कि महाराज में तो इतना खा नहीं सकता । मेरे लिए तो दो एक मालपुए ही बस हैं, इतने मालपुओं का क्या किया जाय, तब बाबा जी ने कहा कि वहां उस कोने में एक थाली कटोरा पड़ा है उसे उठालो और बाकी के मालपुए और दाल उसमें रख दो । रुद्र भैरव अभी आयेगा सो उठाकर ले जायगा । मैंने बाबाजी की आज्ञानुसार वैसा ही किया और दो मालपुए जल्दी २ खाकर मैं निपट गया तब बाबा जी ने मेरे सामने देखा और बोले कि क्या तूने खा लिया ? मैंने जी हां कह कर जवाब दिया । वे बोले बच्चा में तो बुड्ढ़ा हूँ मेरे दांत भी बहुत से नहीं हैं इसलिए मुझे तो भोजन करने में काफी देर लगती है तुम उठ जाओ और बाहर जाकर चुल्लु कर लो। मैं उनका आदेश पाकर अपना कमंडलु लेकर तम्बू के बाहर जाकर हाथ धोया और चुल्लु किया इतने ही में रुद्र भैरव जी बाबाजी की खबर निकालने आये । बाबाजी ने कहा कि किशन तो बहुत कम खाता है । सब मालपुए उधर थाली में निकाल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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