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________________ १००] जिनविजय जीवन-कथा पर मेरे बैठने व सोने की व्यवस्था की गई थी। जब तक भजन मंडलियों का गान, वादन आदि होता रहा, तब तक मैं बैठा २ एकाग्र मन से वह सब सुनता और देखता रहा । कोई रात को एक बजे वह सब कार्य समाप्त हुआ और लोग शिवानन्द भैरव महाराज की जय बोलते हुए अपने २ स्थानों की तरफ चले । मुझे काफी थकान सी मालूम हो रही थी। इतने ही में खाखी महाराज उठकर अपने उस मुख्य शिष्य को लेकर मेरे पास आये और मीठे स्वर से बोले-'किशन भैरव', नींद आ रही होगी अब तुम आराम से सो जाओ और उस अपने शिष्य से कहा कि इसके सोने का कहां इन्तजाम करना सोचा है ? तब वह शिष्य बोला कि गुरु महाराज मैं अपनी छोलदारी में इन्तजाम कर दूं ? या यहीं इस खुले चबूतरे पर कर दूं? तब खाखी महाराज ने मुझ से पूछा कि 'बच्चा' "कहीं सोना पसंद करेगा।" मैंने कहा "महाराज यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं यहीं सो जाऊँ । क्योंकि यह अच्छी खुली जगह है और चांदनी रात में हवा भी अच्छी आ रही है।" खाखी महाराज ने कहा "बच्चा जैसी तेरी मर्जी, किसी प्रकार मन में डरना मत ! मैं भी सामने उसी तम्बू के दरवाजे के आगे चौकी पर सोता हूँ।" ऐसा कहकर खाखी महाराज अपने तम्बू की तरफ चले गये । चेलाजी ने एक मोटा-सा कम्बल लाकर उस चबूतरे पर बिछा दिया। सिरहाने के नीचे रखने के लिए एक छोटा-सा तकिया और ओढ़ने के लिए भगवे रंग में रंगी हुई मोटी-सी चद्दर भी दी। ____ मैं लेट जाने की तैयारी में ही था कि वे सेवक जी मेरे पास आ पहुँचे और बोले कि भैया अब तो तुम महाराज वन गये हो। आज सारा दिन मैं तुम्हारी इस दीक्षा की व्यवस्था और खाने पीने आदि के लिए जो भोजन बना उसमें लगा रहा । ये खाखी महाराज मुझे बहुत बरसों से जानते हैं और कई दफा मैं इनके साथ घूमा फिरा हूँ। मैंने तुम्हारे विषय में बहुत कुछ बातें इनसे की हैं और ये तुम्हें बहुत अच्छी तरह रखेंगे, और विद्या पढ़ाने का इन्तजाम करेंगे । तुम्हारे चेहरे और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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