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________________ श्री सुखानन्द जी का-प्रवास और भैरवी-दीक्षा [६१ कोई फिक्र मत करना !"-और वे चले गये। मुझे तुरन्त ही नींद आ गई । सेवकजी वापिस कब लौटे इसका मुझे कुछ पता नहीं था। सवेरा होने पर हम उठे-सेवकजी ने कुण्ड में नहाने चलने को कहा इससे हम उधर ही चल पड़े, फिर स्नान करके महादेव जी के दर्शन किये । तव सेवकजी कुछ नमकीन मिठाई आदि नाश्ते के लिये ले आये और बोले कि-चलो उस झाड़ के नीचे बैठकर नाश्ता करलें। जब हम नाश्ता कर रहे थे तब सेवकजी बोले-"किशन भाई, रात को मुझे खाखी बाबा ने कहा कि जो लड़का तुम्हारे साथ है, वह किसी बड़े खानदान का है-इसकी भाग्य रेखा बहुत अच्छी है आगे चलकर वह अच्छा नाम कमावेगा और बड़ा विद्वान बनेगा, इसलिये तुम्हारी जो विद्या पढ़ने की मन्शा है, वह अगर तुम इन खाखी महाराज के पास रहोगे तो अच्छी तरह पूरी हो सकेगी, खाखी महाराज चाहते हैं कि तुम इनके पास रहोगे तो तुम्हारे पढ़ने-लिखने और खाने पीने आदि का पूरा इन्तजाम कर देंगे । इतना ही नहीं यदि तुम इनके शिष्य बन जाओगे तो ये तुमको अपना मुख्य शिष्य बना देंगे । इनके पास बहुत लवाजमा है और कई जगह बड़े-बड़े मठ, मकान, मंदिर आदि हैं । इसलिये मेरी तुमको यह हितकर सलाह है कि तुम इनके शिष्य बन जाओ। बानेण में रहने से तुम्हारा कुछ भी भला न होगा और यतियों की अपेक्षा इन खाखी महाराज के पास रहने से बहुत से गांव, शहर और देश देखने को मिलेंगे। पिछले कई महिनों से सेवकजी के साथ मेरा घनिष्ट परिचय हो गया था। वे मुझे अनेक तरह की अच्छी-अच्छी बातें कहा करते थे। बीच में वे मुझं उदयपुर भी जब ले गये थे, तब वहां उन्होंने मेरे विद्या पढ़ने की दृष्टि से एकाध महन्तजी वगैरह के स्थान भी दिखाये थे। इस लिये सेवकजी की बातों पर मेरी श्रद्धा-सी हो गई थी। सेवकजी ने खाखी बाबा के साथ रहने तथा विद्या पढ़ने की जी बातें मुझसे कहीं वे मुझे अच्छी लगी, और मैंने खाखी बाबा का जो कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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