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६०] जिनविजय जीवन-कथा
.. हम दोनों फिर खाखी बाबा के डेरे पर गये। वहाँ कोई एक घन्टे तक आरती भजन कीर्तन आदि होते रहे।
खाखी बाबा अपने तम्बु से बाहर आकर एक चौकी पर बैठे हुए थे। उनके पास जाकर लोग नमस्कार के साथ पैसे टके आदि भेंट करते थे । उनके पास एक लंगोट धारी अच्छा हृष्ट पुष्ट कुछ बड़ी उमर का शिष्य खड़ा हुआ था जो उन पैसों को लेता और बदले में उन लोगों को प्रसाद दिया करता था । खाखी बाबा खास कुछ बोलते नहीं थे, हाथ के इशारे से प्राशीर्वाद देते रहते थे।
बाद में जब सब लोग चले गये और दो चार परिचित जन ही वहाँ बैठे थे, तब खाखी बाबा ने उन सेवकजी से कहा-"सोने का कहां इन्तजाम किया है ?" - तब सेवकजी ने हाथ जोड़कर कहा-'हुकुम हम यहीं कहीं आपकी सेवा में पड़े रहेंगे।" ___ खाखी बाबा ने अपने एक परिजन को बुलाकर कहा कि इनके सोने का इन्तजाम कहीं अपने डेरे में ही कर दो। वह परिजन सेवक जी के साथ मुझे भी एक छोटी-सी छोलदारी में ले गया और बताया कि इसमें बाबाजी महाराज के कामदार सोते बैठते हैं और खास खास चीजें यहाँ रखते हैं, दूसरा कोई आदमी यहां नहीं आता जाता । माप लोग यहाँ खुशी से सो जाइये यह लड़का कुछ थका हुआ मालूम देता है, इसलिये यह यहाँ सो जाय और बाबाजी ने कहा है कि आप उनसे फिर मिल लीजिये ! __ मैं वास्तव में थका हुआ था। इसलिये मैं तुरन्त ही वहाँ पर जो एक दरी सी बिछी हुई थी, उस पर जाकर लेट गया। सेवकजी मुझसे यह कहते हुए उठ खड़े हुये-"किशन भाई तुम अच्छी तरह सो जाओ। मैं खाखी महाराज के पास जाऊंगा और उनसे कुछ बातें करूँगा मेरी
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