SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सुखानन्द जी का-प्रवास और भैरवी-दीक्षा [८६ में आ गये, तब खाखी बाबा ने सेवक जी से कहा-"तुम फिर आना।" सेवक जी ने हाथ जोड कर—'जो हुकम' कहा और मुझे कहा कि चलो बाहर चलें। ___हम फिर सुखानन्द जी के कुड में नहाने आदि के लिये चले गये । मेले में जो पहुत सी दुकाने लगी थीं, उनमें से सेवकजी ने कुछ पूड़ी आदि खाने का सामान लिया और उसे खाकर हम किसी विश्रान्ति स्थान पर जाकर आराम करने लगे। शाम होने पर हम मेला देखने चले । मेले में बहुत सी छोटी-बड़ी दुकानें लगी थीं, जिनमें ग्रामीण-जनों के उपयोग की चीजें रखी हुई थीं । मेले में जो प्रायः आसपास के लोग आये हुए थे, वे चीजें खरीद रहे थे । औरतें, बच्चे और नौजवान भी अपनी पसन्द की चीजें खरीद रहे थे । कुछ मिठाई आदि खाने की चीजों की भी छोटी-बड़ी दूकाने लगी हुई थी, जिनसे बच्चे आदि दो दो चार चार पैसे की चीजें बड़े उत्साह से ले रहे थे। ___मैंने अपनी जिन्दगी में ऐसा मेला पहले कभी नहीं देखा था। मेले में चक डोलर जैसे झूले आदि भी लगे थे, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे और बड़ी तथा बूढ़ी औरतें उत्साह के साथ बैठती और झूलती थी। यह देख कर मेरा भी मन झूले खाने को उत्सुक हुआ; परन्तु उसके लिये देने को मेरे पास पैसा नहीं था । अतः मैं दूर खड़ा-खड़ा देखता रहा और जो लोग झूले का आनन्द ले रहे, मैं उनके आनन्द से ही मनमें आनंदित हो रहा था। इतने में साँझ हो गई और खाखी बाबा के तम्बू में आरती होना प्रारम्भ हो गई । सेवक जी भी आरती में जाने को उत्सुक हुए और मुझे खोजते हुए मेरे पास पहुंचे और बोले-"किशन भाई चलो आरती देखने चलें।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy