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जिनविजय जीवन-कथा
रंग ढंग देखा उससे भी मेरा मन कुछ आकृष्ट हुआ। मैंने सेवकजी से कहा कि अगर आप सलाह देते हैं तो मैं खाखी महाराज के पास रहना पसन्द करता हूँ। मेरी पढ़ने की इच्छा इससे पूरी हो सकेगी। ___ हम वहाँ से उठकर खाखी महाराज के डेरे पर गये तो वे उस समय अपने इष्टदेव की पूजा कर रहे थे। हम तम्बु के बाहर बैठे तो उन्होंने हमें देखकर अन्दर आने का इशारा किया। हम फिर अन्दर चले गये । सेवकजी ने साष्टांग नमस्कार किया। मैंने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। उनकी पूजा का पाठ कुछ बाकी था। इसलिये हमें एक तरफ बैठने का इशारा किया और जल्दी-जल्दी उन्होने अपनी पूजा विधि पूरी को।
सेवकजी ने उनको हाथ जोड़कर कहा "महाराज यह किशन भाई आपकी सेवा में रहकर विद्या पढ़ना चाहता है। मैंने इससे सब बात कह दी है। आप जैसा चाहे वैसा इसके लिये इन्तजाम करने की कृपा करें।"
खाखी महाराज का सौम्य मुख गंभीर हो गया। वे कुछ विचार कर बोले-"आज का दिन वैशाखी पूर्णिमा का बहुत मंगलमय और उत्तम दिन है और यहाँ सुखानन्दजी का बड़ा पवित्र तीर्थ धाम है । हमारी इच्छा है कि यह आज ही गुरु मंत्र लेले और दीक्षित शिष्य बन जाय।"
फिर मेरे सामने पूर्ण सौम्य दृष्टि से देखकर वे बड़े वत्सल भाव से बोले "क्यों बच्चा तेरे को हमारी बात पसन्द है ?" ____ मैंने कहा-"महाराज आप जो कुछ कहें और करें मुझे स्वीकार है।"
खाखी बाबा के सानिध्य में उस समय मेरे मन में उनके शब्दों ने जादू का सा असर किया और उनकी इच्छा के अनुसार मैं करने को तैयार हो गया।
फिर खाखी बाबा ने सेवकजी से कहा-कामदार जी को जाकर
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