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॥ ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ॥
विमर्श
I
'श्रीत्रिपुरा भारतीस्तवः ' की पृष्ठभूमि 'तन्त्रशास्त्र' है । त्रिपुराभारतीस्तोत्र के द्वितीय पद्य के 'वयम्' पद की व्याख्या पञ्जिकावृत्तिकार ने इस प्रकार की है वयम् शाक्तेयाऽऽगमविदः । शाक्त सम्प्रदाय जो कि शक्ति का उपासक है, शैवदर्शन की तत्त्वप्रणालिका का अनुसरण करता है । ज्ञानदीपिका व्याख्या के कर्त्ता आचार्यदेव श्रीसोमतिलकसूरि म. कृत निर्देश अत्यन्त स्पष्ट है । पंद्रहवें पद्य में व्याख्याकार ने शंका के उत्तर में कहा कि- " शिव और शक्ति दोनों भिन्न है । और वही परमार्थमय है ।" शिव और शक्ति का यह भेद पक्ष शैवदर्शनाभिमत है । इसलिये 'तन्त्र' को समझना आवश्यक और प्रस्तुत होगा ।
'तन्त्र' शब्द अनेक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । सिद्धांत - व्याख्यामीमांसा - विचार - औषधि - जादु उपाय - प्रकरण - अधिकार-नियमन - शासन-धर्मकर्तव्य-समूह- आनंद-व्यवहार प्रचलित अर्थ है । प्रस्तुतार्थ में विवक्षित तन्त्र शब्द 'शास्त्रविशेष' रूप अर्थ का वाचक है । जिसमें तन्त्र का वर्णन हो वह शास्त्रविशेष = तन्त्रशास्त्र । तन्त्रशास्त्र के दो प्रकार है (१) दार्शनिक तन्त्रशास्त्र (२) प्रायोगिक तन्त्रशास्त्र । दोनो प्रकार के शास्त्र के साथ इस लघुस्तव का सम्बन्ध है इसलिए दोनों का विवरण करना उचित होगा ।
१. ननु शक्तेरपि शिवात्मकत्वात् तन्नाशे तस्या अपि नाश इति चेन्न, शिवव्यतिरिक्तायाः शक्तेः परमार्थमयत्वात् ।
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