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________________ श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः ___ भाषा-अज्ञान से भी उच्चारण किये गए ऐं बीजाक्षर के प्रभाव की अधिकता बताते है । हे वरदे मनोवाञ्छित वर देनेवाली श्रीभगवती । इह= इस जगत में सहसा= अकस्मात् ही सम्भ्रमकारि वस्तु= भय या आश्चर्य करनेवाली किसी वस्तु को दृष्ट्वा= देखकर येन=जिस पुरुष ने आकूतवशात्= भय या आश्चर्य के अभिप्राय से बिन्दुं विना अपि= अनुस्वार विना भी अक्षरम्=पूर्वोक्त बीजाक्षर का व्याहृतम् = उच्चारण किया है अर्थात् 'ऐ ऐ ऐसा उच्चारण किया है तस्य अपि= उस 'ऐ ऐ' उच्चारण करनेवाले पुरुष को भी हे देवि-भगवती ! तरसा =विद्या का अभ्यास किये विना ही तव-अनुग्रहे-जाते= आप की कृपा प्राप्त हो जाती है। और वक्त्राम्बुजात्= उस पुरुष के मुखारविन्द में से ध्रुवम् निश्चय ही सूक्तिसुधारसद्रवमुचः सुभाषितमय अमृत के रस को झरानेवाली वाच: वाणी नियन्ति= निकलती हैं। भावार्थ:-जो कोई पुरुष भयकारी या आश्चर्यकारी किसी वस्तु को देखकर हँसी ठढे आदि के अभिप्राय से भी यदि 'ऐ ऐ' ऐसे विना अनुस्वार वाग्बीजाक्षर का उच्चारण करता है, तथापि इतना ही उच्चारण करने से प्रसन्न हुई श्रीत्रिपुरा देवी के अनुग्रह से उस पुरुष के मुखारविन्द में से सुन्दर और अमृतसमान अतिमधुर वाणी निकलती है अर्थात् उस वाग्बीजाक्षर के उच्चारण करने के प्रभाव से वह पुरुष अत्यन्त बुद्धिमान् और कविजनों में शिरोमणि हो जाता है ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001966
Book TitleTripurabharatistav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size6 MB
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