SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीत्रिपुरा भारतीस्तवः तत्काल श्रीगङ्गानदी की तरङ्गों के समान गहन और अस्खलित संस्कृतभाषा के श्लोकों को बोलना प्रारम्भ कर देता है' । यह सुनकर उस राजा ने अपने नौकरों को वैसे बालक को लाने के लिये इशारा किया । वे नौकर लोग तुरत ही एक आठ वर्ष की आयुष्यवाले और बिलकुल अनपढ़ बालक को ले आये । तब उस पण्डित ने लड़के को स्नान करा के लाल वस्त्र पहनाये और उस बालक को राजा के सम्मुख बिठा कर उसके शिर पर हाथ रखकर उच्चस्वर से कहा कि 'बोल !' तब वह बालक मनोवांछित सिद्धियों के देनेवाले मेँ क्लीँ सोँ आदि बीजाक्षरों से युक्त इस स्तोत्र के इक्कीस श्लोकों से नवकोटि नामवाली श्रीत्रिपुरा देवी की स्तुति करने लगा । उन श्लोकों रहस्य का विशेष कठिन होने के कारण मन्दबुद्धि पुरुष उसको नहीं जान सकते हैं । इसलिये व्याख्याकार श्रीसोमतिलकसूरि कहते हैं कि हम से भी मन्दबुद्धि लोगों की सुविधा के लिए हम उस लघुस्तवराज स्तोत्र की व्याख्या करते हैं । *** २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001966
Book TitleTripurabharatistav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy