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________________ तेरा ध्यान न जो करे, भगवती ! कैसे बने वो कवि ? । आचार्य दंडीने सरस्वती को सर्वशुक्ला कहा, कवयित्री विज्जिकाने इसका प्रतिवाद किया, लिखा इन्दीवरदलश्यामां विज्जिकां मामजानता । वृथैव दण्डिना प्रोक्ता सर्वशुक्ला सरस्वती ॥ सरस्वती सर्वशुक्ला है, इस विधान में सौन्दर्य, निर्दोषता और प्रभावकता अभिप्रेत है । विज्जिका अपने आपको वाग्देवता का अवतार समझती थी, श्यामवर्णा होना प्रशस्य नहि माना गया, तो विज्जिकाने अपनी ज्ञानगरिमा और कवित्वप्रतिभाको प्रस्तुत करके सरस्वती को श्यामवर्णा प्रतिपादित की । - श्री लध्वाचार्य ने श्रीत्रिपुराभारतीस्तव में सरस्वती के अनेकविध सौंदर्य की मंगलगाथा प्रस्तुत की है, यद्यपि यह स्तोत्र मन्त्रगर्भित है, तन्त्रशास्त्रीय है; फिर भी यहाँ पर काव्यतत्त्व मनोरम है । ___ सरस्वती शुक्ल और श्याम ही नहि है। अनेक रंगछटा सरस्वती ने धारण कर ली है। _ 'भालमध्य में इन्द्रधनुष की प्रभा, मस्तक पर चन्द्रप्रभा का तेज और हृदय में सूर्य किरण की उपमा दे कर त्रिविधरूपा सरस्वती प्रथम स्तुति में वर्णित की है ! अलंकार तो गौण है, मुख्य है रस या भाव । शृंगाररस का स्थायीभाव रतिभाव है, इसे भक्तिसम्प्रदाय ने रतिभाव के रूप में आबद्ध नहि 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001966
Book TitleTripurabharatistav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size6 MB
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