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उपसंहार :
__ इस विमर्श में तन्त्र की दार्शनिक और प्रायोगिक पृष्ठभूमि का संक्षिप्त विवरण करने का प्रयास किया है। श्रीत्रिपुराभारतीस्तव की वृत्ति का विद्यार्थी भाव से अवगाहन करते करते यह विमर्श प्रगट हुआ है । इसको केवल विद्यार्थीओ को जिज्ञासापूर्ति के लिये शब्दो में ढाल दिया है ।
जैन श्रमण होने के नाते सावध और अवद्यानुबंधी तन्त्रप्रयोग में विमर्शकार की कोई रुचि नहीं है । न कोइ अनुमोदना का भाव है । अध्येतागण, पाठकगण, और विवेचक गण इसको अन्यथारूपेण ग्रहण न करे ऐसी अपेक्षा है।
मार्गशीर्ष शुक्ला १३, २०५९ ३०, जैन मरचन्ट सोसायटी पालडी, अहमदाबाद
वैराग्यरतिविजय
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