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अनात्म में आत्मबुद्धि ही बंध का कारण है । सब की मान्यतानुसार इन कारणों का नाश होने से ही आत्मा में मोक्ष की संभावना है, अन्यथा नहीं । मुमुक्षु के लिए सर्व प्रथम कार्य यही है कि अनात्म में श्रात्म बुद्धि का निराकरण किया जाए ।
( ३ ) बंध क्या है ?
आत्मा या जीवतत्त्व तथा अनात्मा अथवा अजीव तत्त्व ये दोनों भिन्न भिन्न हैं, फिर भी इन दोनों का जो विशिष्ट संयोग होता है, वही बंध है- अर्थात् जीव का शरीर के साथ संयोग ही आत्मा का बंध है । जब तक शरीर का नाश न हो जाए तब तक जीव का सर्वथा मोक्ष नहीं हो सकता । मुक्त जीवों का भी अजीव या जड़ पदार्थों के साथ - पुद्गल परमाणुओं के साथसंयोग तो है किंतु वह संयोग बंध की कोटि में नहीं आता, क्योंकि मुक्त जीवों में बंध के कारण भूत मोह - अविद्या - मिध्यात्व का अभाव है । अर्थात् उन का जड़ से संयोग होने पर भी वे इन जड़ पदार्थों को अपने शरीरादि रूप से ग्रहण नहीं करते । किंतु जिस जीव में अविद्या विद्यमान है, वह जड़ पदार्थों को अपने शरीरादि रूप से ग्रहण करता है । अतः जड़ और जीव का विशिष्ट संयोग ही बंध कहलाता है जीव को मानने वाले सब मतों में सामान्यतः बंध की ऐसी ही व्याख्या है ।
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आत्मा और अनात्मा इन दोनों का बंध कब से हुआ, इस प्रश्न का विचार कर्मतत्त्व विषयक विचार से संकलित है । उपनिषदों में कर्मतत्त्व विषयक मात्र इस सामान्य विचार का उल्लेख हैं कि शुभ कर्मों का शुभ तथा अशुभ कर्मों का अशुभ फल मिलता है । किंतु कर्म तत्त्व क्या है, वह अपना फल किस प्रकार देता है, इसका आत्मा के साथ कब संबंध हुआ, इन सब विषयों का विचार
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