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( १४६ ) राजिक, तावतिंस, याम, तुसित, निम्मानरति, परनिम्मितवसवत्ति नाम के देवनिकायों का समावेश काम-सुगति नाम की कामावचर भूमि में है। उनमें कामभोग की प्राप्ति होती है, अतः चित्त चंचल रहता है।
रूपावचर भूमि में उत्तरोत्तर अधिक सुख वाले १६ देवनिकायों का समावेश है जिसका विवरण इस प्रकार है:__ प्रथम ध्यानभूमि में-१ ब्रह्मपारिसन्ज, २ ब्रह्मपुरोहित, ३ महाब्रह्म
द्वितीय ध्यानभूमि में-४ परित्ताभ, ५ अप्पमाणाभ, ६ आभस्सर
तृतीय ध्यानभूमि में-७ परित्तसुभा, ८ अप्पमाणसुभा, ६ सुभकिण्हा
चतुर्थ ध्यानभूमि में-१० वेहप्फला, ११ असबसत्ता, १२-१६ पांच प्रकार के सुद्धावास
सुद्धावास के ये पांच भेद हैं-१२ अविहा, १३ अतप्पा, १४ सुदस्सा, १५ सुदस्सी, १६ अकनिठा ।
अरूपावचर भूमि में उत्तरोत्तर अधिक सुखवाली चार भूमि हैं१--आकासानंचायतन भूमि २-विज्ञआणञ्चायतन भूमि ३–अकिंचंबायतन भूमि ४-नेवसझानासायतन भूमि
अभिधम्मत्थसंगह में नरकों की संख्या नहीं बताई गई है किंतु मज्झिमनिकाय में उन विविध कष्टों का वर्णन है जो नारकों को भोगने पड़ते हैं। (बालपंडितसुत्तंत-१२६ देखें)
जातक (५३०) में ये आठ नरक बताए गए हैं-संजीव, कालसुत्त, संघात, जालरोरुव, धूम रोरुव, तपन, प्रतापन, अवीचि ।
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