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( १४६ ) उपनिषदों में नरक का वर्णन .यह बात पहले कही जा चुकी है कि ऋग्वेद काल के आर्यों ने पापी पुरुषों के लिए नरक स्थल की कल्पना नहीं की थी, किंतु उपनिषदों में यह कल्पना विद्यमान है। नरक कहां है, इस विषय में उपनिषद् मौन हैं। किन्तु उपनिषदों के अनुसार नरक लोक अंधकार से आवृत हैं, उनमें आनन्द का नाम भी नहीं है। इस संसार में अविद्या के उपासक नरक को प्राप्त होते हैं। आत्मघाती पुरुषों के लिए भी यही स्थान है और अविद्वान् की भी मृत्यूपरांत यही दशा है। बूढ़ी गाय का दान देने वालों की भी यही गति होती है। यही कारण है कि नचिकेता जैसे पुत्र को अपने उस पिता के भविष्य के विचार ने अत्यंत दुःखी किया जो बूढ़ी गायों का दान कर रहा था। उसने सोचा कि मेरे पिता इनके बदले मुझे ही दान में क्यों नहीं दे देते। - उपनिषदों में इस विषय में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि ऐसे अंधकारमय लोक में जाने वाले जीव सदा के लिए वहीं रहते हैं अथवा वहां से उनका छुटकारा भी हो जाता है। पौराणिक नरक
नरक के विषय में पुराण कालीन वैदिक परंपरा में कुछ विशेष विवरण मिलते हैं। बौद्ध और जैनमत के साथ उनकी तुलना करने पर ज्ञात होता है कि यह विचारणा तीनों परंपराओं में समान ही थी।
योगदर्शन व्यास भाष्य में सात नरकों के ये नाम बताए गए हैं-महाकाल, अम्बरीष, रौरव, महारौरव, कालसूत्र, अन्धतामिस्र, अवीचि। इन नरकों में जीवों को अपने अपने किए हुए कमों के
१ कठ १.१.३; बृहदा० ४.४.१०-११; ईश ३.९. .
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