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( १४१ ) वरुणलोक में जाते हैं। वरुणलोक सर्वोच्च स्वर्ग है। वरुण लोक में जाने वाले मनुष्य की सभी त्रुटियाँ दूर हो जाती हैं और वह वहां देवों के साथ मधु, सोम अथवा घृत का पान करता है। वहां रहते हुए उसे अपने पुत्रादि द्वारा श्राद्धतर्पण में अर्पित पदार्थ. भी मिल जाते हैं । यदि उसने स्वयं इष्टापूर्त (बावड़ी, कुआँ, तालाब आदि जलस्थान का निर्माण) किया हो, तो उसका फल भी स्वर्ग में मिल जाता है।
वैदिक आर्य श्राशावादी, उत्साही और आनन्दप्रिय लोग थे। उन्हों ने जिस प्रकार के स्वर्ग की कल्पना की है, वह उनकी विचारधारा के अनुकूल ही है। यही कारण है कि उन्होंने प्राचीन ऋग्वेद में पापी आदमियों के लिए नरक जैसे स्थान की कल्पना नहीं की। दास तथा दस्यु जैसे लोगों को आर्य लोग अपना शत्रु समझते थे, उनके लिए भी उन्होंने नरक की कल्पना नहीं की। किंतु देवों से यह प्रार्थना की है कि वे उनका सर्वथा नाश कर दें। मृत्यु के बाद उनकी क्या दशा होती है, इस विषय में उन्होंने कुछ भी विचार नहीं किया। ___ जो पुण्यशाली व्यक्ति, मर कर स्वर्ग में जाते हैं, वे सदा के लिए वहीं रहते हैं। वैदिक काल में यह कल्पना नहीं की गई थी कि पुण्य का क्षय होने पर वे पुनः मर्त्यलोक में वापिस आ जाते हैं। हां, ब्राह्मण काल में इस मान्यता का अस्तित्व था ।
१ ऋगवेद ७. ८८. ५ ।। २ ऋग्वेद १०. १.४ ८; १०. १५. ७ । ३ ऋग्वेद १०.१५४. १ । ४ Creative Period p. 26. ५ Creative Period P. 27, 76.
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