SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंच-रथ । पंच-शाखा : पंचायतन : पंजर : पट्ट : पट्टिका : पत्र - लता : पत्र - शाखा : पद्म : पद्म बंध : पद्म- शिला परिकर : पाश : पीठ : प्रति-रथ : प्रदक्षिणा : प्रदक्षिणा-पथ : प्रस्तार : प्राकार : प्राग-ग्रीवा : फलक : फांसना : बलानक : पिना भद्र : भद्र-पीठ : भमती : भरणी : भिट्ट : मकर- तोरण : Jain Education International पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या पाँच प्रपेक्षों सहित मंदिर द्वार की पांच अलंकृत पबलों सहित चौलट चार लघु मंदिरों से परिवृत मंदिर लघु अर्धवृत्ताकार मंदिर अर्थात् नीड अलंकरण से रहित या सहित पट्टी शिला - सदृश गोटा ; सबसे ऊपर का एक गोटा पत्रांकित लत्ताओं की पंक्ति प्रवेश द्वार का वह पक्खा जिसपर पत्रांकन होता है कमलाकार गोटा या एक भाग; दक्षिण भारतीय फलक को आधार देने के लिए बनाया जाने वाला एक कमलाकार शीर्ष भाग एक अलंकृत पट्टी जो दक्षिण भारतीय स्तंभ के मध्य भाग और शीर्ष-भाग के मध्य में होती है छत का अत्यलंकृत कमलाकार लोलक मूर्ति के साथ की अन्य श्राकृतियाँ जाल या फंदा चौकी या पाद-पीठ भद्र और कर्ण के मध्य का प्रक्षेप परिक्रमा परिक्रमा पथ दक्षिण भारतीय विमान का विस्तार मंदिर को परिवृत करने वाली भित्ति मुख-मण्डप का प्रक्षेप, अर्थात् अग्र-मण्डप स्तंभ का शीर्ष भाग भवन का आड़े पीठों से बना वह ऊपरी भाग जो पश्चिम भारतीय स्थापत्य में प्रचलित है और जिसे उड़ीसा के स्थापत्य में पीडा देउन कहा जाता है। आवृत सोपान यद्ध प्रवेश-द्वार जंघा को ऊपरी और निचले भागों में विभक्त करने वाला एक प्रक्षिप्त गोटा गर्भगृह का मध्यवर्ती प्रक्षेप गोटेदार पाद पीठ का एक दक्षिण भारतीय प्रकार मध्यकाल के जैन मंदिरों में द्रष्टव्य स्तंभों के मध्य का मार्ग स्तंभ - शीर्ष मंदिर का उप-अधिष्ठान प्रवेश द्वार का अलंकरण या मकर-मुखों से निकलता बंदनवार 624 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy