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पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या
छाद्य : छदितट-प्रक्षेप जगती : ऐसा पीठ जो सामान्यतः गोटेदार होता है जंघा :
मंदिर का वह मध्यवर्ती भाग जो अधिष्ठान से ऊपर और शिखर से नीचे होता है जाड्य-कुंभ : मध्यकाल के मंदिर में द्रष्टव्य पीठ (चौकी) का सबसे नीचे का गोटा जालक : जाली जो सामान्यत: गवाक्ष में या शिखर पर होती है । जीवंतस्वामी : मुकुट और आभूषण धारण किये खड़े हुए महावीर की मूर्ति तरंग :
एक लहरदार डिजाइन जो पश्चिम के एक गोटे से मिलती-जुलती है तरंग-पोतिका : तोड़ा-युक्त शीर्ष जिसका गोटा घुमावदार होता है तल : मंदिर, विमान या गोपुर का एक खण्ड; अर्थात् भूमि । दक्षिण-भारतीय विमान में एक, दो या तीन
या इससे भी अधिक तल हो सकते हैं। सबसे नीचे का खण्ड मादि-तल और मध्य का खण्ड मध्य
तल कहलाता है ताडि (तमिल) : दक्षिण-भारतीय स्तंभ के शीर्ष का एक गद्दीनुमा भाग तिलक : एक प्रकार की कंगूरों की डिजाइन तोरण : अनेक प्रकारों और डिजाइनों का अलंकृत द्वार त्रिक-मण्डप : तीन चतुष्कियों या खाँचों सहित ऐसा मण्डप जिसका प्रचलन मध्य काल में, विशेषतः जैन मंदिरों
में था त्रिकूट : तीन विमान जो एक ही अधिष्ठान पर निर्मित हों या एक ही मण्डप से संयुक्त हों त्रि-शाख : द्वार के तीन अलकृत पक्खों के सहित चौखट दण्ड-छाद्य : छत का सीध। किनारा अर्थात् छदितट-प्रक्षप देवकुलिका : लघु-मंदिर ; भमती के सम्मुख स्थित सह-मंदिर नदीश्वर-द्धीप : जैन लोक-विद्या का पाठवा महाद्वीप नव-रंग : वह महा-मण्डप जिसमें चार मध्यवर्ती और बारह परिधीय स्तंभों की ऐसी योजना होती है कि
उससे नौ खांचे बन जाते हैं नर-थर : मानव-प्राकृतियों की पक्ति नाभिच्छद : एक प्रकार की मलकृत छत जिसपर मंजूषाकार सूच्यनों की डिजाइन होती है नाल-मण्डप : अर्थात् बलानक या पावत सोपान-युक्त प्रवेश-द्वार नासिका : (शब्दार्थ-नाक) दक्षिण भारतीय विमान का वह खुला हुआ भाग जो प्रक्षिप्त और तोरण-युक्त
होता है अल्प-नासिका या क्षुद्र-नासिका उससे लघुतर और महानासिका बृहत्तर होती है निरंधार-प्रासाद : प्रदक्षिणा-पथ से रहित मंदिर निषद्या, निषेधिका, : जैन महापुरुष का स्मारक-स्तंभ या शिला नृत्य-मण्डप : अर्थात् रंग-मण्डप; परिस्तंभीय सभा-मण्डप पंच-तीथिका : पाँच तीर्थंकर-मूर्तियों से सहित पट्ट पंच-मेरु :
जैन परंपरा के पांच मेरुषों की अनुकृति
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