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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 कारीतलाई स्थान से प्राप्त हुई हैं जिनका समय दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी है । छत्तीसगढ़ से प्राप्त प्रतिमाओं में से चार रतनपुर से, और दो खण्डित प्रतिमाएं रायपुर जिले के प्रारंग से प्राप्त की गयी हैं। ये सभी प्रतिमाएँ बारहवीं शताब्दी की हैं। सिरपुर से प्राप्त प्रतिमा पार्श्वनाथ : पार्श्वनाथ की इस प्रतिमा (०००३; ऊँचाई १.०८ मी.) में तीर्थंकर को पद्मासन-मुद्रा में दिखाया गया है। तीर्थंकर के सिर पर सप्त-फणी नाग-छत्र है। नाग की समानांतर कुछ कुण्डलियाँ ऐसी प्रतीत होती है जैसे वे तीर्थंकर के पीछे तकिये का कार्य दे रही हों और किनारों पर उत्कीर्ण मकर की प्राकृतियाँ तीर्थकर के आसन की पीठ की रचना करती दिखाई दे रही हैं। तीर्थंकर का मुख, हाथ और घुटने खण्डित हैं। तीर्थंकर के वक्ष पर श्री-वत्स चिह्न और हथेलियों पर चक्र अंकित हैं। उनके धुंघराले बाल उष्णीष में आबद्ध हैं। इस प्रतिमा का पादपीठ अत्यंत खण्डित है। कारीतलाई से प्राप्त प्रतिमाएं कलचुरियों के काल में कारीतलाई जैनों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था । यहाँ पर बड़ी संख्या में जैन प्रतिमाएँ प्राप्त की गयी थीं जिनमें से तैतीस प्रतिमाएं इस संग्रहालय द्वारा प्राप्त की गयीं। ऋषभनाथ की प्रतिमाएँ : संग्रहालय में ऋषभनाथ की पाषाण निर्मित छह प्रतिमाएँ हैं। इनमें से एक प्रतिमा (२५३७; ऊँचाई १.३५ मी.) में ऋषभनाथ पद्मासन-मुद्रा में एक अलंकृत उच्च पादपीठ पर बैठे हैं। तीर्थकर का सिर, दायाँ हाथ और बायाँ घुटना खण्डित है। वक्ष पर श्री-वत्स चिह्न और सिर के पीछे भामण्डल अंकित है। भामण्डल के ऊपर एक तिहरा छत्र है जिसके दोनों पाश्वों में गज पर प्रारूढ़ एक-एक प्राकृति प्रदर्शित है। छत्र के ऊपर एक दंदुभिवादक है। गजों के नीचे माला-धारी विद्याधर-दंपति अंकित है। विद्याधरों के नीचे सौधर्म एवं ईशान स्वर्गों के इंद्र चमर धारण किये खड़े हैं। पादपीठ पर वृषभ और उसके नीचे धर्मचक्र है जिसके पावों में एकएक सिंह अंकित हैं। सिंहासन के दायीं ओर के कोने पर गोमुख यक्ष तथा बायीं ओर के कोने पर चक्रेश्वरी यक्षी ललितासन-मुद्रा में बैठी है। ऋषभनाथ की दूसरी प्रतिमा (२५७६; ऊँचाई १.३२ मी०) पूर्वोक्त प्रतिमा की ही भांति है। इस प्रतिमा में तीर्थंकर के दोनों हाथ और घुटने खण्डित हैं । यक्षी चक्रेश्वरी को गरुड पर आरूढ दिखाया गया है। ऋषभनाथ की शेष चारों प्रतिमाओं (००३३, २५२५, २५४८ तथा २५६४) में तीर्थंकर को पद्मासन-मुद्रा में दिखाया गया है । एक प्रतिमा (००३३; ऊँचाई ७४ सें. मी.) के पादपीठ पर बायें सिरे पर चकेश्वरी के स्थान पर अंबिका अंकित है जबकि दूसरी प्रतिमा (२५४८) के सिंहासन में सिंहों के साथ दो हाथी भी अंकित हैं। 608 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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