SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 10 ] भारत के संग्रहालय पर उसकी स्थापना की तिथि संवत् १११८ का उल्लेख है। शांतिनाथ की दो प्रतिमाओं पर संवत १२२२ और १२३१ का उल्लेख है। एक देवी प्रतिमा पर तीन पंक्तियों का अभिलेख अंकित है जिसमें संवत् १२२४ का उल्लेख है। आष्टा और कर्चा से प्राप्त मुनि सुव्रतनाथ की दो प्रतिमाएँ बारहवीं शताब्दी की विशेषताएँ लिये हुए हैं। गुना से प्राप्त पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय है। इस प्रतिमा में तीर्थंकर को सप्त-फणी नाग-छत्र के नीचे पद्मासन-मुद्रा में बैठे हए दर्शाया गया है। उनके पार्श्व में बायीं ओर यक्ष धरणेंद्र अोर दायीं ओर यक्षी पद्मावती प्रदर्शित है। जैन देवी-प्रतिमाओं में बदनावर से प्राप्त यक्षी चक्रेश्वरी की प्रतिमा का खण्डित अंश अति उत्तम है। इसी स्थान से प्राप्त महामानसी, रोहिणी, अंबिका और निर्वाणा देवी की प्रतिमाएँ कलात्मक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। एक शिला पर उद्भुत प्रतिमा (१४१) में छह जैन देवियों को अपनी गोद में शिशुओं को बैठाये हए दर्शाया गया है। प्रत्येक देवी के नीचे उसका नाम भी अंकित है। एक अन्य शिलोद्भुत प्रतिमा (१५६) में चार नारी आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं जिनके नीचे उनके नाम देव-दासी, रसद्गुण-देवी, विमारवती और त्रिशला-देवी अंकित हैं। इस संग्रहालय में बाईस धातु-प्रतिमाएं और एक समवसरण भी है जिनमें अधिकांश प्रतिमाएँ अभिलेखांकित हैं। सत्यंधर कुमार सेठी सुरेंद्र कुमार आर्य रायपुर संग्रहालय रायपुर स्थित महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय में जैन प्रतिमाओं का एक समृद्ध संग्रह है जिसमें चालीस पाषाण-निर्मित तीर्थंकरों, सेवक देवी-देवताओं, चौमुख, सहस्रकूट आदि प्रतिमाएँ हैं। ये प्रतिमाएँ कलचुरि शासकों के काल की हैं। इनमें मात्र एक ही ऐसी प्रतिमा है जो दक्षिण कोसल के सोमवंशीय शासनकाल की है। इन उन्तालीस कलचुरिकालीन प्रतिमाओं में से तैंतीस प्रतिमाएँ डाहल या चेदि के कलचुरि शासकों के काल की कला का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिनकी राजधानी जबलपुर के समीप त्रिपुरी (आधुनिक तेवर) में थीं। शेष छह प्रतिमाएँ उन स्थानों से प्राप्त हुई हैं जो कलचुरियों के उत्तराधिकारियों के शासनाधीन थे और जिनकी राजधानी बिलासपुर जिले के रत्नपुर (आधुनिक रतनपुर) में थी। सोमवंशीय शासनकाल की एकमात्र प्रतिमा दक्षिण कोसल की प्राचीन राजधानी सिरपुर (प्राचीन श्रीपुर) से प्राप्त हुई बतायी जाती है। इस प्रतिमा का समय लगभग ८०० ई० निर्धारित किया जाता है। समस्त डाहल प्रतिमाएँ जबलपूर जिले के 607 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy