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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 ; प्रतिमा में मात्र एक तीर्थंकर पार्श्वनाथ को । यहाँ पर एक मान- स्तंभ ( २६० ऊँचाई १.०६ मी० ) भी है जिसमें एक सौ उनतालीस पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ अंकित हैं। इन तीर्थंकरों में से मात्र आदिनाथ को ही पहचाना जा सकता है । शिवपुरी संग्रहालय इस संग्रहालय में जैन प्रतिमाओं का एक संपन्न संकलन है जो प्रायः नरवर ( प्राचीन नलपुर ) से प्राप्त किया गया है । इनमें से यहाँ कुछ विशेष प्रतिमानों का ही उल्लेख किया जा रहा है । चतुर्विंशति-पट्ट : इस पट्ट ( १६७ माप १.०६ मी० ४४६ सें० मो० ) में एक पंक्ति में चौबीसों तीर्थंकरों की लघु प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं और समस्त तीर्थंकरों के लांछन उनके पैरों के नीचे अंकित हैं। पट्ट पर अंकित अभिलेख के अनुसार इस पट्ट पर चौबीसों तोर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं तथा इस पट्ट को संवत् १०६३ (सन् १००६) में स्थापित किया गया था । बालचंद्र जैन तीर्थंकर प्रतिमाएँ: इस संग्रहालय में तीर्थंकरों की अनेक प्रतिमाएँ हैं जो कायोत्सर्ग - मुद्रा में हैं। अधिकांश प्रतिमाएँ वारहवीं शताब्दी की मानी जा सकती हैं। चंद्रप्रभ ( चित्र ३६९ ) की प्रतिमा (१४६ ) के पादपीठ पर अंकित अभिलेख से ज्ञात होता है कि जयचंद्र ने अपनी पत्नियों सुहना तथा मोना और पुत्र आशाधर सहित इस प्रतिमा की प्रतिष्ठापना संवत् १२४१ में की थी । एक अन्य प्रतिमा (२; ऊँचाई २ मो० ) में अजितनाथ को एक तिहरे छत्र के नीचे कायोत्सर्ग - मुद्रा में दर्शाया गया है । इस प्रतिमा के शीर्ष पर आमलक और कलश भी अंकित हैं। छत्र-त्रय के ऊपर एक अलंकृत देवकोष्ठ में एक तोर्थंकर को पद्मासन मुद्रा में दिखाया गया है। तीर्थंकर की मुख्य प्रतिमा के पार्श्व में दोनों ओर चमरधारी दो इंद्रों की प्रतिमाएँ थीं जो खण्डित हो चुकी हैं। पादपीठ सिंह प्रतिमाओं से भलो भाँति अलंकृत है । इसपर एक पद्मासन तीर्थंकर युक्त एक देवकोष्ठ भी अंकित है । प्रतिमा के शीर्ष भाग में मकर-तोरण और कीर्ति मुख है। पादपीठ पर अजितनाथ का लांछन गज अंकित है जिसके दोनों ओर दो उपासक श्राकृतियाँ भी हैं । एक अन्य प्रतिमा (३, ऊँचाई १.५५ मी०) में संभवनाथ को उनके लांछन अश्व सहित अंकित किया गया है । उनके छत्र के दोनों ओर हाथी हैं जो अपनी सूंड़ों में कमल की कलियाँ लिये हैं । पादपीठ पर उपासक - दंपति भी अंकित है । अभिनंदननाथ (४; ऊँचाई २.०५ मी०) तथा पद्मप्रभ ( ५; १.६५ मी०) की प्रतिमाएँ न्यूनाधिक पूर्वोक्त अजितनाथ की प्रतिमा की भाँति हैं, जिनमें मात्र उनके लांछन चिह्नों का ही अंतर है । अन्य अनेक तीर्थंकरों को कायोत्सर्ग प्रतिमाएँ भी इसी प्रकार की हैं। इनमें से एक प्रतिमा ( १९; ऊँचाई १.३५ मो० ) अत्यंत आकर्षक है जो किसी अचिह्नित तीर्थंकर को है । इसपर अत्युत्तम पालिश है । Jain Education International 604 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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