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________________ अध्याय 38 ] भारत के संग्रहालय ग्वालियर किले के क्षेत्र से प्राप्त ॠऋषभनाथ की प्रतिमा (११८; ऊँचाई ७२ सें०मी० ) में तीर्थंकर दो सिंहों पर आधारित पादपीठ पर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए दिखाये गये हैं । दूसरी प्रतिमा (३८४ ) संभवत: ऋषभनाथ की प्रतिमा का खण्डित पादपीठ है । एक अन्य प्रतिमा (३०; ऊँचाई ६२ सें०मी० ) में संभवनाथ को अंकित किया गया है जिसके पादपीठ पर उनका लांछन अश्व अंकित है । पद्मप्रभ की प्रतिमा ( ११६; ऊँचाई ८३ सें० मी०) का निचला भाग महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पादपीठ पर संवत् १५५२ का एक अभिलेख अंकित है जिसके अनुसार तोमरवंशीय शासक महाराजाधिराज मानसिंह के शासनकाल यह प्रतिमा गोपाचल दुर्ग ( ग्वालियर) में प्रतिष्ठापित की गयी थी । इस अभिलेख से ग्वालियर के भट्टारकों के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है जो मूल संघ के बलात्कार गण के सरस्वती- गच्छ के भट्टारक पद्मनंदी की परंपरा से संबंधित थे । ग्वालियर के किले से प्राप्त चंद्रप्रभ की एक पंच- तीथिका प्रतिमा ( १२५; ऊँचाई १.४२ मी०) में मूल नायक तीर्थंकर चंद्रप्रभ दो सिंहों पर आधारित अर्ध- वृत्ताकार पादपीठ पर कायोत्सर्गमुद्रा में खड़े हुए हैं। तीर्थंकर का लांछन पादपीठ पर दर्शाया गया है। चंद्रप्रभ के साथ ही तीर्थंकरों की चार लघु प्रतिमाएँ भी अंकित हैं जिनमें से दो कायोत्सर्ग - मुद्रा में तथा दो पद्मासन मुद्रा में हैं । ग्वालियर के किले से नेमिनाथ की प्रतिमा ( ११७; ऊँचाई २ मी०) भी प्राप्त हुई है जिसमें पादपीठ पर आधारित पद्म-पुष्प पर तीर्थंकर कायोत्सर्ग - मुद्रा में खड़े हैं तथा उनके पार्श्व में दोनों ओर इंद्र हैं । पादपीठ पर तीर्थंकर का लांछन शंख धर्मचक्र तथा एक उपासिका अंकित है । एक पार्श्वनाथ प्रतिमा का खण्डित निचला भाग भी इस काल की एक उल्लेखनीय प्रतिमा के रूप में परिगणित किया जा सकता है । इसके पादपीठ पर दायें और बायें कोनों पर क्रमशः यक्ष धरणेंद्र और यक्षी पद्मावती की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं । इन दोनों यक्ष और यक्षी के ऊपर नाग फण छत्र है । यक्षी एक नाग पर बैठी है और यक्ष का वाहन कुक्कुट भी तोमरवंशीय शासक विक्रमादित्य के शासनकालीन तिथि संवत् १४७६ ( ? ) का अभिलेख अंकित है जिसमें काष्ठा-संघ के पुष्कर - गण और माथुर - अन्वय के भट्टारक सहस्रकीर्ति का भी उल्लेख है । एक अन्य प्रतिमा (३०६; माप ६७५७ सें० मी०) किसी विशाल पार्श्वनाथ प्रतिमा का खण्डित शीर्षभाग है । अंकित है । पादपीठ पर ग्वालियर के ग्वालियर के किले से प्राप्त प्रतिमा (१२६; ऊँचाई ७१ सें० मी०) में एक अचिह्नित तीर्थकर को पद्मासन मुद्रा में दिखाया गया है। एक दूसरी प्रचिह्नित तीर्थंकर - प्रतिमा (६८३; ऊँचाई १. २६ मी०) का प्राप्ति-स्थान ज्ञात नहीं है । इसके अतिरिक्त दो अन्य पद्मासन तीर्थंकर - प्रतिमाएँ ( १३३ तथा १७४) भी हैं । एक पट्ट ( माप ३५x५१ सें०मी०) में अठारह तीर्थंकर दिखाये गये हैं जो तीन पंक्तियों में अंकित हैं । यह पट्ट पंद्रहवीं शताब्दी का हो सकता है । इस संग्रहालय में तोमर काल की दो सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएँ (२६१ और २६३; ऊँचाई क्रमशः १.१६ तथा १.२१ मी०) भी हैं जिनकी चारों सतहों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। पहली प्रतिमा में आदिनाथ और पार्श्वनाथ इन दो तीर्थंकरों को पहचाना जा सका है और दूसरी Jain Education International 603 For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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