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संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[ भाग 10
में यह भी उल्लिखित है कि यह प्रतिमा जैन साध्वियों की प्रमुख साध्वी द्वारा प्रतिष्ठित की गयी थी । यहाँ यह उल्लेख करना उपयुक्त रहेगा कि उपकेश-गच्छ पट्टावली के अनुसार जैन आचार्य रत्नप्रभ सूरी ने महिषमर्दिनी को सच्चिका के नाम से जैन देवशास्त्र में प्रतिष्ठापित किया था। यह देवी प्रोसिया के समकालीन जैन मंदिर में प्रतिष्ठित सचिया-माता से पृथक् कोई अन्य देवी नहीं है जिसकी उपासना आज भी की जाती है। (द्वितीय भाग में पृष्ठ २५५ देखिए-संपादक)।
भरतपुर संग्रहालय
भरतपुर संग्रहालय में आदिनाथ की एक सर्वतोभद्र प्रतिमा संरक्षित है जो मूर्तिपरक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। कायोत्सर्ग तीर्थकर (चित्र ३५७ ख) की यह प्रतिमा चारों दिशाओं से समवसरण की जैन परंपरा के अनुरूप दिखाई देती है। तीर्थंकर के केश छल्लों के रूप में प्रसाधित हैं। इस संग्रहालय में नेमिनाथ की भी एक प्रतिमा है जिसके पादपीठ पर शंख का चिह्न अंकित है (चित्र ३५८ क)।
डूंगरपुर आर्ट गैलरी
इस संग्रहालय में प्रदर्शित प्रतिमाओं में आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा उल्लेखनीय है। स्थानीय पारेवा पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा प्रारंभिक मध्यकाल (सातवीं-आठवीं शताब्दी) की कलाकृति है ।
अजमेर संग्रहालय
आदिनाथ की एक विशाल प्रतिमा का प्रावक्ष भाग इस संग्रहालय की एक उल्लेखनीय कृति है जो छठी-सातवीं शताब्दी की है। यह प्रतिमा शेरगढ़ (धौलपुर, भरतपुर जिला) से प्राप्त हुई है। तीर्थंकर के माथे पर फिरे हुए केश-गुच्छ, सिर पर बालों के छल्ले और ऊपर जटाएँ, सिर के पीछे अण्डाकार भामण्डल आदि प्रतिमा के कलात्मक अंकन की कला-चातुरी का प्रदर्शन करते हैं। संग्रहालय में एक शीर्ष-विहीन पार्श्वनाथ की प्रतिमा भी है जो प्रारंभिक मध्यकाल की कृति प्रतीत होती है।
केंद्रीय संग्रहालय, जयपुर
जयपूर के केन्द्रीय संग्रहालय में प्रारंभिक मध्यकालीन, काले पत्थर की कायोत्सर्ग तीर्थंकर की आकर्षक प्रतिमा अपना प्रमुख स्थान रखती है। यह प्रतिमा (चित्र ३५८ ख) पिलानी के निकट नरहद से प्राप्त हई है। नरहद से प्राप्त अनेक प्रतिमाएँ नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित हैं।
रत्न चन्द्र अग्रवाल
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