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________________ अध्याय 38 ] भारत के संग्रहालय बीकानेर संग्रहालय बीकानेर संग्रहालय में एक दर्जन जैन कांस्य-प्रतिमाएँ संरक्षित हैं जो उसे अमरसर से प्राप्त हुई हैं। इन प्रतिमाओं में चमरधारी की एक प्रतिमा कलात्मक दृष्टि से अत्यंत आकर्षक है। दूसरी उल्लेखनीय प्रतिमा पद्मासन पार्श्वनाथ की है जिसे यहाँ (चित्र ३५५) पर प्रकाशित किया जा रहा है । संग्रहालय में बीकानेर जिले के पल्लू नामक स्थान से प्राप्त संगमरमर से निर्मित सरस्वती की दो प्रसिद्ध प्रतिमानों में से एक प्रतिमा भी संरक्षित है जो चाहमान-कला की एक उत्कृष्ट कलाकृति है (द्वितीय भाग में चित्र १५४ और इस भाग में चित्र ३३७) । आहाड़ संग्रहालय, उदयपुर पाहाड़ (उदयपुर के निकट प्राघाटपुर) प्रारंभिक मध्यकाल में जैन कला का केंद्र रहा प्रतीत होता है । अाज से लगभग तीस साल पूर्व यहाँ पर खुदाई में एक प्रारंभिक मध्यकालीन जैन प्रतिमा प्राप्त हुई थी जो इस समय पाहाड़ के संग्रहालय में सुरक्षित है। यह प्रतिमा पद्मासन तीर्थंकर की है जो आकार में मानव की ऊँचाई से कहीं अधिक है (चित्र ३५६ क)। प्रताप संग्रहालय, उदयपुर प्रताप संग्रहालय में संरक्षित पाँचवीं-छठी शताब्दी में निर्मित अंबिका यक्षी की एक शीर्ष-विहीन प्रतिमा उल्लेखनीय है । यह स्थानीय हरे-नीले पारेवा पत्थर में उत्कीर्ण है। यह प्रतिमा उदयपुर जिले के जगत नामक स्थान से प्राप्त हुई है। अंबिका अपने दायें हाथ में आम्र-गुच्छ धारण किये है और बायें हाथ से अपनी गोद में बैठे शिशु को। इस प्रतिमा में कोई भी जैन प्रतीक अंकित नहीं है। इस संग्रहालय में जैन कुबेर की एक दुर्लभ प्रतिमा भी है (चित्र ३५६ ख) और यह भी हरे-नीले पारेवा पत्थर से निर्मित है जिसका रचना-काल आठवीं-नौवीं शताब्दी निर्धारित किया जा सकता है । यह प्रतिमा चित्तौड़ जिले के बाँसी नामक स्थान से प्राप्त हुई है। इस प्रतिमा में कुबेर को बैठी हुई मुद्रा में दायें हाथ में बीजपूरक तथा बायें हाथ में नकुलक (थैली) लिये हुए दिखाया गया है। हाथी को उसके नीचे अंकित किया गया है। कुबेर के घुघराले बालों के ऊपर आकर्षक मुकुट है जिसपर तीर्थंकर की लघु आकृति तथा वैसी ही एक अन्य प्राकृति जड़ी हुई है। जोधपुर संग्रहालय जोधपुर संग्रहालय में दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित जीवंतस्वामी की एक अत्यंत उत्कृष्ट प्रतिमा (चित्र ३५७ क) प्रदर्शित है । यह कृति नागपुर जिले के खिम्वसर नामक स्थान से प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा अत्यंत कलात्मक और भली-भाँति सुरक्षित है। इस संग्रहालय में बारहवीं शताब्दी की एक जैन महिषमर्दिनी-प्रतिमा भी संरक्षित है। श्वेत संगमरमर से निर्मित इस देवी-प्रतिमा को इसके पादपीठ पर अंकित विक्रम संवत् १२३७ के अभिलेख में सच्चिका कहा गया है। अभिलेख 589 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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