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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 f नेमिनाथ (४८.४/३६) : यह प्रतिमा घिस चुकी है। इसमें तीर्थंकर को तिहरे छत्र के नीचे सिंहासन पर पद्मासन-मुद्रा में दर्शाया गया है। उनके सिर के पीछे प्रकाश-किरणों से युक्त भामण्डल है। तीर्थंकर के पार्श्व में दोनों ओर देवकुलिका में बैठे हुए पद्मासन तीर्थकर हैं तथा एक अन्य खड्गासन-मुद्रा में भी हैं। सिंहासन के दोनों ओर तीर्थंकर का सेवक यक्ष गोमेध तथा यक्षी अंबिका है। तीर्थंकर का लांछन शंख भी अंकित है। अन्य प्राकृतियाँ यथापूर्व हैं। प्रतिमा के पीछे संवत् १५१८ की तिथि का अभिलेख अंकित है । पार्श्वनाथ (४८.४/२०) : इस प्रतिमा में तीर्थंकर सिंहासन पर सप्त-फण नाग-छत्र के नीचे पद्मासन-मुद्रा में बैठे हुए हैं । तीर्थंकर के केश छोटे-छोटे छल्लों में प्रसाधित हैं। वे गलहार और भुजबंध पहने हैं। उनकी आँखें, श्री-वत्स-चिह्न तथा आसन का सम्मुख-भाग चाँदी और तांबे की पच्चीकारी से बना है। उनके पार्श्व में दोनों ओर दो पद्मासन तथा दो खड्गासन तीर्थंकर हैं। नाग-छत्र के ऊपर तथा पादपीठ के सम्मुख-भाग पर दोनों किनारों की ओर हाथी अंकित हैं। सिंहासन के पार्श्व में उनका सेवक यक्ष धरणेंद्र तथा यक्षी पद्मावती और पादपीठ के सम्मुख-भाग में नवग्रह अंकित हैं। उनका लांछन नाग भी अंकित है। प्रतिमा के पीछे संवत् १४८७ का एक अभिलेख उत्कीर्ण है। महावीर (४८.४/१७) : इस प्रतिमा में तीर्थंकर सिंहासन पर तिहरे छत्र के नीचे पदमासन मुद्रा में प्रदर्शित हैं । छत्र के पार्श्व में हाथी और गंधर्व अंकित हैं। तीर्थंकर की आँखें, श्री-वत्स-चिह्न तथा आसन का सम्मुख-भाग चाँदी और ताँबे की पच्चीकारी से निर्मित है। उनके पार्श्व में दो चमरधारी सेवक खड़े हैं तथा सिंहासन के पार्श्व में दोनों ओर उनका यक्ष मातंग और यक्षी सिद्धायिका है। उनका लांछन सिंह भी अंकित है । प्रतिमा के पीछे संवत् १३६२ का अभिलेख अंकित हैं। कायोत्सर्ग तीर्थंकर (६४.४४४) : यह एक चालुक्यकालीन दुर्लभ कांस्य-प्रतिमा है जिसमें तीर्थंकर को कमल पर कायोत्सर्ग मुद्रा में दर्शाया गया है। तीर्थंकर के केश घंघराले छल्लों में अति सुंदरता के साथ प्रसाधित हैं। तीर्थंकर के वक्षस्थल पर श्री-वत्स चिह्न अंकित नहीं है। शैलीगत आधार पर इस प्रतिमा के लिए दसवीं शताब्दी का समय निर्धारित किया जा सकता है (चित्र ३४२ क ) । चौमुखी प्रतिमाएं : संग्रहालय में दो चौमुखी प्रतिमाएँ भी हैं जिनमें से एक प्रतिमा (६३.११८७) छोटे आकार की है जिसके चारों ओर पद्मासनस्थ तीर्थंकरों की लघु प्राकृतियां अंकित हैं। इस प्रतिमा का शीर्ष-भाग अलंकृत तथा चैत्य गवाक्ष जैसा है जिसके शीर्ष पर कलश स्थित है। यह प्रतिमा लगभग दसवीं शताब्दी की है ( चित्र ३४२ ख)। दूसरी चौमुखी प्रतिमा (४७.१०६/२०७) में चारों ओर चार देव-कोष्ठ हैं जो सामान्यतः मण्डप के प्रकार के हैं। इनमें चार पद्मासन तीर्थंकर-प्रतिमाएँ स्थित हैं। यह प्रतिमा मल रूप में वर्गाकार है जिसका आधार-भाग छज्जेदार था तथा शीर्ष-भाग शिखर-युक्त है। शिखर 580 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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