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अध्याय 35 ]
मूर्तिशास्त्र
हुए हैं, और दो प्रतीकों की पहचान नहीं हो सकी है जिनमें से पहला आसन (भद्रासन ?) हो सकता है । इससे भी अधिक अखण्डित अष्टमंगल सीहनादिक द्वारा स्थापित प्रयाग-पट (लखनऊ संग्रहालय की प्रविष्टि संख्या जे. २४६)1 पर अंकित हैं। इसपर और अचला द्वारा स्थापित प्रयाग-पट पर मध्य के चतुष्कोण में चार ऐसे त्रिरत्न अंकित हैं जिनकी रचना पृथक्-पृथक् अंगों से हुई है। सबसे ऊपर मध्य के सम-चतुष्कोण स्थान में, सीहनादिक द्वारा स्थापित आयाग-पट पर मत्स्य-युगल, विमान, श्रीवत्स-लांछन और वर्धमानक के अंकन हैं । इसके समीप ही जो सबसे नीचे की पंक्ति है उसमें त्रिरत्न, पूर्ण विकसित कमल, एक ऐसा प्रतीक जिसे अग्रवाल ने इंद्र-यष्टि या वैजयंती नाम दिया है, और एक मंगल-कलश हैं 12
एक मथुरा-निवासी द्वारा स्थापित पायाग-पट (लखनऊ संग्रहालय का क्रमांक जे. २४८) के मध्य में एक सोलह आरों का चक्र है जो धर्मचक्र होना चाहिए। शिवघोषक की पत्नी द्वारा स्थापित पायाग-पट (लखनऊ संग्रहालय का क्रमांक जे. २५३) पर चार ऐसे त्रिरत्न हैं जिनकी रचना पृथक्पृथक् अंगों से हुई है (और उनके मध्य में एक जिन-मूर्ति का अंकन है) । एक अज्ञात दानी द्वारा स्थापित आयाग-पट (लखनऊ संग्रहालय का क्रमांक जे. २५०) पर मध्य के बड़े वृत्त में एक अलंकृत स्वस्तिक है जिसकी चारों भुजाओं के भीतर क्रमशः स्वस्तिक, श्रीवत्स, मीन-युगल और इंद्र-यष्टि (वैजयंती ?, स्थापना ?) के अंकन हैं। मध्य के लघुतर वृत्त में एक संयुक्त त्रिरत्न है जिसके मध्य में एक तीर्थंकर-मूर्ति का अंकन है । इस आयाग-पट के सब से नीचे की पंक्ति में कुछ खण्डित प्रतीक हैं जिनमें से जल-पात्र, अर्धोन्मीलित कमल, त्रिरत्न और स्वस्तिक की पहचान सहज हो जाती है। शिवमित्र द्वारा स्थापित आयाग-पट के उपलब्ध खण्ड पर मध्य में एक बड़ी रिहल का एक पैर अंकित बच गया है जिसे उपर्युक्त आयाग-पटों के संदर्भ में स्थापना (?) या इंद्र-यष्टि (?) आदि कहा गया है। इस विश्लेषण से व्यक्त होता है कि उपर्युक्त प्रत्येक आयाग-पट पर अष्ट-मंगलों में से कुछ या सभी के लघु अंकनों के अतिरिक्त किसी एक मंगल द्रव्य का बड़ा या मुख्य अंकन भी होता है। कदाचित् ऐसे आयाग-पट रहे होंगे जिनपर उन शेष मंगल-द्रव्यों के भी बड़े या मुख्य अंकन रहे होंगे जिन्हें कुषाणकालीन मथुरा के जैन मानते होंगे। इससे प्रकट है कि हेमचंद्र को अष्ट-मंगलों के अंकन
1 पूर्वोक्त, चित्र 13, पृ 79. 2 वासुदेव शरण अग्रवाल, ए गाइड टु लखनऊ म्यूजियम, पृ 2, चित्र 5, और उन्हीं का हर्षचरित : एक सांस्कृतिक
अध्ययन, पृ 120. /स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 7, पृ 14. 3 शाह, पूर्वोक्त, 1955, चित्र 14, पृ 77. /स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 8, पृ 15. /बूलर. एपिप्राफिया इणिका,
2, पृ 200, 313. 4 शाह, पूर्वोक्त, 1955, चित्र 12, पृ76-77. /स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 10, 117. 5 शाह, पूर्वोक्त, 1955, चित्र 11, पृ 81. /स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 9, 1 16. 6 शाह, पूर्वोक्त, 1955, पृ 80./स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 13, 1 20.
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