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________________ पुरालेखीय एवं मुद्राशास्त्रीय स्रोत [ भाग 8 होयसल शासक प्रबुद्ध जैन धर्मावलंबी थे, उनके राज्य में कर्नाटक भी सम्मिलित था। इस राजवंश का प्रथम इतिहास-पुरुष विनयादित्य-द्वितीय (१०४७-११०० ई०) शांतिदेव नामक जैन साधु की सहायता से सत्ता में आया था। बिट्टिग विष्णुवर्धन की पत्नी शांतला देवी जैन गुरु प्रभाचंद्र की शिष्या थी। उसके कुछ मंत्रियों ने जैन धर्म का संवर्धन किया। इसमें संदेह नहीं कि प्रारंभिक होयसल शासक तबतक जैन धर्मावलंबी होते रहे जबतक रामानुज ने बिट्टिग को वैष्णव धर्म में दीक्षित न कर लिया । धर्म-परिवर्तन से पूर्व तक बिट्टि एक कट्टर जैन रहा, वह इस राजवंश का सबसे महान् शासक था। उसके धर्म-परिवर्तन के बाद भी उसकी पत्नी शांतला देवी जैन बनी रही। बिट्रि प्रथम होयसल शासक था जिसने १११६ ई० में चोल राज्यपाल से तलकाड जीतने के बाद स्वर्ण-मुद्राओं का प्रसार किया था। उसकी मुद्राओं पर अंकित केसरी सिंह और सिंहासीन यक्षी अंबिका का प्रारंभ में असंगत अर्थ ले लिया गया था, संगत अर्थ यह है कि धर्म-परिवर्तन से पूर्व वह जैन धर्मावलंबी था। धर्म-परिवर्तन के बाद तो उसने अपनी मुद्राओं पर रामानुज की मूर्ति अंकित करायी। होयसल मुद्राएँ दो ठप्पों की सहायता से बनायी गयीं अत: चालुक्य मुद्राओं की अपेक्षा वे अधिक सुघड़ दिखती हैं । होयसल मुद्राओं के दो वर्ग सुपरिचित हैं, उन्हें विष्णुवर्धन ने तलकाड और नोलंबवाडी की विजय के उपलक्ष्य में स्वर्ण-मुद्राओं के रूप में प्रसारित किया था । तलकाडु-गण्ड वर्ग और नोलंबवाडी-गण्ड वर्ग की मुद्राएँ ये हैं : तलकाडु-गण्ड-वर्ग अग्रभाग : एक रेखा-वृत्त में दाहिनी ओर बायाँ पैर उठाये और मुख पीछे की ओर घुमाये एक केसरी सिंह का अंकन । उसके ऊपर दाहिनी ओर ही एक और वैसा ही छोटा सिंह सूर्य और चंद्र के साथ अंकित है। यह सिंह एक स्तंभ की ओर घूमा हुआ है जिसके शीर्ष-भाग पर चक्र दिखाया गया है। पृष्ठभाग : कन्नड़ में तीन पंक्तियों का लेख-(१) श्री-त-(२) लकाडु-(३) गण्ड । नोलंबवाडी-गण्ड-वर्ग अग्रभाग : एक रेखावृत्त में दाहिनी ओर लघु बिंदुओं द्वारा अंकित एक केसरी सिंह; उसके पीछे एक देवी-मूर्ति है जिसके चार हाथों में से एक में खड्ग और दूसरे में चक्र है और उसकी एक ओर एक लघु आकृति अंकित है। 1 बाम्बे गजेटियर, 1. भाग 2, पृ 492. 2 प्रायॉलॉजिकल सर्वे मॉफ मैसूर, एनुअल रिपोर्ट, 1929. 3 इलियट. कॉइन्स पॉफ़ सदर्न इण्डिया, 1886. लंदन, पृ 82. 4 वही, चित्र 3, 90; आर्कयोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ मैसूर, एनुअल रिपोर्ट, 1929, पृ 24, चित्र 9, 2. 5 इलियट, वही, चित्र 3,91. प्रायॉलॉजिकल सर्वे ऑफ़ मैसूर, एनुअल रिपोर्ट, 1929, 24, चित्र 9, 2. 474 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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