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अध्याय 34 ]
दक्षिण भारतीय मुद्रानों पर अंकित प्रतीक पाण्ड्य शासकों की कांस्य मुद्राएँ ही कदाचित् ऐसी मुद्राएँ हैं जिनपर भ्रष्ट मंगल द्रव्यों का अंकन है और इनकी एक उल्लेखनीय विशेषता यह भी है कि वे एक ही पंक्ति में उसी प्रकार अंकित हैं जिस प्रकार जूनागढ़ की बावा प्यारा मठ नामक जैन गुफा समूह में गुफा 'के' के प्रवेश-द्वार पर अंकित हैं । इन प्रतीकों का तात्पर्यार्थ आचार - दिनकर में बताया गया है। कलश की पूजा तीर्थंकर के एक प्रतीक के रूप में की जाती है; दर्पण अपने स्वरूप के दर्शन का प्रेरक है ; भद्रासन की पूजा यह मानकर की जाती है कि उसे मंगलमय भगवान् के चरण पवित्र करते हैं; तीर्थंकर के हृदय से केवलज्ञान के उद्भव का सूचक है श्रीवत्स लांछन, स्वस्तिक शांति का सूचक है; नौ कोणों सहित नंद्यावर्त नव-निधियों का सूचक है; और कामदेव के ध्वज पर भी अंकित होनेवाला मीन-युगल सूचित करता है कि तीर्थंकर से पराजित होकर कामदेव ने उनकी पूजा की । 2 अष्ट- मंगल द्रव्यों की सूचियाँ विभिन्न श्वेतांबर और दिगंबर ग्रंथों में दी गयी हैं । ( पाण्ड्य शासकों की मुद्रानों पर जो-जो द्रव्य अंकित हैं उनकी भी गणना इन सूचियों में है ।)
उनमें से कुछ का अंकन जैन कला में हुआ है। तिरुप्परुत्तिकुण्डम् ( जिनकांची ) के जैन मंदिरों का विवरण देते हुए टी० एन० रामचंद्रन ने अष्ट मंगल ये बताये हैं: स्वर्ण कलश, घट, दर्पण, अलंकृत व्यजन, ध्वज, चमर, छत्र, पताका । उन्होंने मंगल द्रव्यों की एक सूची और भी दी है : छत्र, चमर, ध्वज, स्वस्तिक, दर्पण, कलश, चूर्ण पात्र और भद्रासन 14 अष्ट मंगलों की एक तीसरी सूची भी उन्होंने त्रिलोकसार से उद्धृत की है' ।
कर्नाटक में जैन धर्म का स्वर्णयुग गंग शासकों के काल में था जिन्होंने जैन धर्म को अपना राजधर्म घोषित किया । छठीं से ग्यारहवीं शती तक उसे गंग शासकों ने बहुत अधिक संरक्षण प्रदान किया । जैन आचार्य सिंहनंदी ने न केवल गंग राज्य की स्थापना मौलिक सहयोग प्रदान किया प्रत्युत उन्होंने प्रथम गंग शासक कोंगणिवर्मन् - प्रथम के परामर्शक के रूप में भी कार्य किया । इन पश्चिमी गंग शासकों ने अपने अधिकार में आने वाले तमिल भाषी और कन्नड़भाषी जिलों में अनेक महत्त्वपूर्ण स्मारकों का निर्माण किया । इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है श्रवणबेलगोल की विशाल गोम्मटमूर्ति जिसका निर्माण होयसल शासकों के प्रसिद्ध गंग सेनापति चामुण्डराय ने कराया (द्वितीय भाग में अध्याय १९ ) ।
1 बर्जेस (जे). रिपोर्ट ग्रॉफ़ दि एंटीक्विटोज श्रॉफ़ काठियावाड एण्ड कच्छ, प्रायॉलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया, न्यू इंपीरियल सीरिज़, 2. 1876, लंदन, प्रथम भाग में पृ. 93 रेखाचित्र 5.
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शाह, वही, पृ 111 [ तृतीय भाग में अध्याय 35 भी देखिए संपादक ]
3 रामचंद्रन ( टी एन ). तिरुप्परुत्तिक्कुण्रम् एण्ड, इट्स टेम्पल्स, बुलेटिन ऑफ़ द मद्रास गवर्नमेण्ट म्यूज़ियम, न्यू सीरिज, जनरल सेक्शन, 1, 3, 1934 मद्रास.
4 वही, पृ 190.
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त्रिलोकसार, 5.989.
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