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पुरालेखीय एवं मुद्राशास्त्रीय स्रोत
[ भाग 8 इरुगपवोडेय के नाम से हुआ है। कदाचित् उसी व्यक्ति ने एक और चैत्यालय या मंदिर बनवाया, ऐसा शक संवत् १३०७ (१३८५ ई०) में उत्कीर्ण हरिहर-द्वितीय के शासनकाल के एक अभिलेख में वृत्तांत है। उसी शासक के मंत्री और इरुगप के भ्राता इम्मडि-बुक्क ने कुर्नूल में १३६५ में2 कुंथुनाथ तीर्थंकर की मूर्तिसहित एक मंदिर का निर्माण कराया। उल्लेख है कि स्वयं देवराय-द्वितीय ने शक संवत् १३४८ (१४२६ ई.) में विजयनगर में पार्श्वनाथ का एक चैत्यागार बनवाया था। इन मंदिरों की विशेषता यह है कि इनके शिखरभाग का आकार सोपान-युक्त पिरामिड के समान होता है। इसके अतिरिक्त, इनके प्रवेश के द्वारपक्षों पर नीचे एक-एक तुंदिल यक्ष बना होता है। उनके प्रवेश-द्वारों के सरदलों पर ललाट-बिम्ब के रूप में साधारणत: गजलक्ष्मी की मूर्ति बनी होती है। इन मंदिरों की भित्तियों पर मूर्तियाँ या उनकी पंक्तियाँ बिलकुल नहीं होती।
तमिलनाडु में प्राचीनतम जैन स्मारक अधिकतर दक्षिणी जिलों की उन अनेक दुर्गम प्राकृतिक गुफाओं और कंदराओं के रूप में हैं जिनमें ऊपर से बाहर की ओर निकली एक चट्टान के नीचे शय्याएँ बनी होती हैं जिनका एक भाग तकिया की भाँति ऊँचा रखा जाता है या फिर वे समतल किन्तु अलंकृत होती हैं। इन शय्याओं पर और कुछ गुफाओं के बाहर ऊपर तमिल भाषा और ब्राह्मी लिपि में अभिलेख उत्कीर्ण हैं । इनमें पाली, अदिट्टानम् आदि का उल्लेख है, और ये तीसरी शती ई० पू० से तीसरी शती ई० तक के हैं। इस काल का कोई जैन अवशेष केरल में नहीं मिलता। किसी भी जैन स्मारक का संदर्भ देने वाला दूसरा अभिलेख तिरुनाथरकुण्रू (दक्षिण अर्काट जिला) का है जिसकी तिथि लगभग छठी शती की है (चित्र ३०४ क)। उसमें लिखा है कि यह स्मारक चंद्रनंदि-आशीरियर (प्राचार्य) की निषीधिका है जिनका संलेखना-मरण सत्तावन दिन के उपवास के अनंतर हुआ । इस स्थान पर शिला को ऊपरी भाग पर काटकर आसीन-मुद्रा में चौबीस जैन मूर्तियाँ बनायी गयी हैं जो कदाचित् तीर्थंकरों की हैं।
अंतराल में जैन धर्म को कलभ्र शासकों और बाद में उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी पल्लव और पाण्ड्य शासकों का प्रश्रय मिला। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और कदाचित् प्राचीनतम सुरक्षित स्मारक प्रसिद्ध नगर कांची में है जो एक ऐसे केंद्र के रूप में विख्यात रहा है जहाँ सभी धर्मों ने उन्नति की। यह स्मारक वर्धमान को समर्पित एक मंदिर है जिसके लिए उस जिले की जनता ने सिंहविष्णु के पिता पल्लव सिंहवर्मा (छठी शती का पूर्वार्ध) के शासनकाल में भूमि का दान किया
1 वही, 1936. पृ 32. 2 वही, 1889. फरवरी 3. 3 [देखिए प्रथम भाग में अध्याय 9. --संपादक] 4 महादेवन् (माई). कॉर्पस ऑफ़ तमिल ब्राह्मी इंस्क्रिप्शंस, सेमिनार अॉन इंस्क्रिप्शंस, 1966. मद्रास. 5 साउथ इण्डियन इंस्क्रिप्शंस. 17, 1. मुखचित्र.
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