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________________ अध्याय 32 ] काष्ठ-शिल्प कोणों पर एक-एक मंदिर की अनुकृति है जिसके दूसरी ओर एक-एक द्वारपाल का अंकन है। द्वारपालों के ऊपर उत्कीर्ण गवाक्षों से झाँकती हई मनुष्यों की प्राकृतियाँ प्राभास देती हैं कि यह एक बहु-तल भवन का आलेखन है। ऐसा ही एक लघु द्वार बड़ौदा संग्रहालय में है। उसपर गहरा और सूक्ष्म शिल्पांकन है और वह सोलहवीं शती का माना गया है। किन्तु राष्ट्रीय संग्रहालय के उक्त द्वार को अठारहवीं शती का मानना होगा क्योंकि उसपर पत्रावलियों और मूर्तियों का अंकन स्थूल है और उनमें वह आकर्षण नहीं है जो बड़ौदा संग्रहालय के द्वार में है। प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम ऑफ वेस्टर्न इण्डिया, बंबई में भी किसी आवास-गृह का एक काष्ठ निर्मित मण्डप है (चित्र २६३)। १८८ सेण्टीमीटर लंबे, १५६ सेण्टीमीटर चौड़े और ३६ सेण्टीमीटर ऊँचे तथा दो सोपानों से युक्त अधिष्ठान पर प्रस्तुत यह मण्डप विस्तृत शिल्पांकन सहित चार स्तंभों पर आधारित है जिनके मध्य का अंतर कुछ कम है और जिनपर कभी पॉलिश रही है । इन स्तंभों पर देवकोष्ठिकाओं का अंकन है जिनमें देव-देवियाँ, नर्तक-नर्तकियाँ और दिव्य संगीत-मण्डलियां आलिखित हैं। इन स्तंभों के नीचे विष्णु और ब्रह्मा मौर उनके अनुचरों की प्राकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। स्तंभों के शीर्षों पर मुस्लिम तथा स्थानीय अभिप्रायों का अंकन है, उनमें देवकोष्ठिकानों में प्रस्तुत प्राकृतियां, पक्षी और संगीत-मण्डलियाँ तथा अन्य अलंकरण आलिखित हैं। मदल अब केवल तीन बच रहे हैं, उनमें दो पर तो एक-एक नारी-संगीतकार उत्कीर्ण है और एक पर एक मृदंग-वादक । नारी-संगीतकार सँकरी चोली और कसा स्कर्ट और पाजामा पहने है, उसका लंबा, पतला ज़रीदार उत्तरीय कंधों से होकर ढीली गाँठ में बँधा हुआ पैरों तक चला आया है। मृदंगवादक के अंकन में भी छह कोणों के पटका सहित जामा और अटपटी पगड़ी के रूप में मुस्लिम-प्रभाव स्पष्ट है। स्तंभ-शीर्षों पर चारों प्रस्तार आधारित हैं जिनपर स्तूपी की योजना है। मण्डप क्योंकि जैन मंदिर का है अत: शिल्पी ने उसपर अंकन के लिए विषय-वस्तु तीर्थंकरों के जीवन से ली है। पट्टियों में जन-समूह चलते हुए अंकित हैं जिनमें गजारोही, अश्वारोही, शिविकाधारी, पदाति, अश्वों और वृषभों द्वारा खींचें जाते रथ, उष्ट्रों पर बैठे ढोल बजाते और प्रश्वों पर बैठे भेरी बजाते मनुष्य अंकित हैं (चित्र २६४ क)। साधुओं को उपदेश देते एक आचार्य का दृश्य भी सुंदर बन पड़ा है । पट्टिकाओं के ऊपर एक ४६ सेण्टीमीटर ऊंची अष्टकोणीय स्तूपी (चित्र २६४ ख) की संयोजना है जिसके अंतर्भाग पर पंक्तिबद्ध वृत्ताकारों का अलंकरण है। स्तूपी का बहिर्भाग ऐसा प्रतीत होता 1 गोयेज (एच). 'द पोस्ट-मेडिएवल स्कल्पचर्स ऑफ़ गुजरात', बुलेटिन प्रॉफ़ बडोदा म्यूजियम एण्ड पिक्चर गैलरी, बड़ौदा. 1947-48, 5, भाग 1-2, रेखाचित्र 2. 2 अन्धारे (एस के). 'पेण्टेड वुडन मण्डप फ्रॉम गुजरात', बुलेटिन प्रॉफ़ व प्रिंस प्रॉफ़ वेल्स म्यूजियम मॉफ़ वेस्टर्न इण्डिया, 7, बंबई. 1959-62, 41-45 और चित्र 29 से 33 सी तक. 445 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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