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वास्तु- स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई०
[ भाग 5
गया, किन्तु रूढ़ कला परंपराओं का प्रभाव फिर भी अत्यधिक बना रहा। ग्येत्स ने मध्यकालीन मूर्तिकला के बारे में ठीक ही कहा है कि “दसवीं शताब्दी के अंत में उसने ललित एवं मौलिक सौंदर्य की प्राप्ति की; ग्यारहवीं शताब्दी में उसमें शास्त्रीय प्रौढ़ता आयी और बारहवीं शताब्दी में ललित शैली का उसने विकास किया । बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वह कला धीरे-धीरे रूढ़िग्रस्त, अत्यलंकृत
मिलिंग क
रेखाचित्र 16. केमला ( बल्गारिया) : कांस्य तीर्थंकर - मूर्ति ( राजग्राद म्यूज़ियम) (ब्रेतजेस के अनुसार )
तथा प्रति-विस्तारपूर्ण हो गयी। उसके पश्चात् उसके विकास में उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न रूपांतरण हुए, यद्यपि वह सर्वत्र मूलरूप से एक-सी ही रही । उसमें झलक थी समृद्धि और निर्धनता की, शांति और युद्ध संबंधी उन कारणों की जिनके फलस्वरूप सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन में गति आती है या अवरोध प्राता है । "
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1 ग्येत्स ( हरमन ). पार्ट एण्ड प्राकिटेक्चर ग्रॉफ बीकानेर स्टेट. 1950. ऑक्सफोर्ड पृ 85.
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