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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई० [ भाग 5 SEE थानाLIT LAITHILJTAK EDIT रेखाचित्र 13. इलाहाबाद संग्रहालय : देवकुलिका (प्रमोदचंद्र के अनुसार) रेखाचित्र 14. इलाहाबाद संग्रहालय : मंदिर (प्रमोदचंद्र के अनुसार) में वह घिसी-पिटी शैली ही रह गयी । इन मंदिरों में कदाचित मण्डप और स्तंभ-युक्त कक्ष हुआ करते थे, किन्तु उनके आकार और निर्माण-विवरणों के बारे में निश्चयपूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। मंदिर चाहमान साम्राज्य के अंतर्गत अनेक जैन मंदिरों का निर्माण किया गया था। जैन साहित्य और समसामयिक शिलालेखों में इस प्रकार के भवनों के अनेक उल्लेख मिलते हैं। मंदिरों के अवशिष्ट भागों एवं अवशिष्ट मूर्तियों से भी यह संकेत मिलता है कि इस अवधि में अनेक जैन मंदिर विद्यमान थे । दुर्भाग्यवश, अधिकांश चाहमान मंदिर और अन्य भवन परवर्ती काल में नष्ट कर दिये गये और जो बचे रहे वे भी जीर्णोद्धार या नवीनीकरण की प्रक्रिया में इतने परिवर्तित हो गये कि उन्हें पहचानना कठिन है। इस अवधि की जैन निर्माण-कला का कदाचित् एक मात्र अच्छा उदाहरण ओसिया (प्राचीन उपकेश) स्थित प्रसिद्ध महावीर-मंदिर-समूह (रेखाचित्र १५) में देखा जा सकता है । इस स्थान का उल्लेख सिद्धसेन-सूरि के सकल-तीर्थ-स्तोत्र में एक जैन तीर्थ-स्थान के रूप में किया गया है। यह मंदिर अपने मूलरूप में प्रतीहार शासक वत्सराज (७८३-७६२ ई०) के शासनकाल में बना था। इसमें 248 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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