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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई० [ भाग 5 एक तो वे जिनमें अलंकृत तथा सघन मूल्यंकन है और दूसरे वे जिनका रूप पारंपरिक है और जिनमें स्तंभावली पर तथा उससे ऊपर श्रृंखलायुक्त घण्टिका, चतुर्भुजी टिकिया आदि लोकप्रिय कला-प्रतीकों का निर्भीक किन्तु सीमित अलंकरण है। कुछ स्तंभ तो सपाट भुजाओं वाले एवं सादे हैं । राजस्थान और दिल्ली ( कुतुब क्षेत्र में ) के जैन मंदिरों के कुछ अवशेषों में परवर्ती शैली के उदाहरण देखे जा सकते हैं। गाहड़वाल- युग की जैन स्थापत्य कला का अध्ययन कठिन है क्योंकि इसके लिए हमारे पास श्रावस्ती स्थित शोभनाथ ( संभवनाथ मंदिर स्थल ( रेखाचित्र १२ ) से प्राप्त अत्यंत क्षतिग्रस्त, ईंट निर्मित भवन के अतिरिक्त और कोई सामग्री वास्तव में है ही नहीं । बटेश्वर ( जिला आगरा ) तथा पारसनाथ (बिजनौर) से प्राप्त जैन मंदिर के पुरावशेषों से हमें उक्त युग की मंदिर-निर्माण SCALE OF SCALE OF ॐ Jain Education International 10 5 0 ......... 18.10M. X 14.94M. 10 246 20 50 15 For Private & Personal Use Only 40 METRES FEET रेखाचित्र 12. श्रावस्ती : शोभनाथ मंदिर की रूपरेखा ( वोगेल के अनुसार ) कला को समझने में सहायता नहीं मिलती । बटेश्वर के एक ऊँचे टीले के बारे में कार्लाइल' ने एक महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट किया है "में तुरंत यह जान गया कि अनेक खाइयों के अवशेषों तथा उसपर और उसके आसपास भित्तियों की नींव के अवशेषों से युक्त यह टीला प्रत्यंत प्राचीन : YUTA 1 बेगलर (जे डी) तथा कार्लाइल ( ए सी ). आक् यॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, रिपोर्ट, 1871-72, खण्ड 4. ( पुनर्मुद्रित वाराणसी). 1966. 266. d.N.GANDHI www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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