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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई. [ भाग 4 - चिंगलपट जिले के प्रोरंबक्कम ग्राम की पंचपाण्डवमलै पहाडी की शैल-शय्याओं से युक्त प्राकृतिक गुफाओं में हाल ही में इसी प्रकार के जैन अधिष्ठान मिले हैं। उनमें से एक के समीप आदिनाथ की प्रतिमाएं मिली हैं । आदिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के शिल्पांकनों को शिलामुख पर ही उत्कीर्ण किया गया है जबकि पार्श्वनाथ की मूर्ति पूर्णाकार मंदिर-मुख के भीतर उसी कार अंकित है जैसे महाबलीपुरम में अर्जुन के तपश्चरण के भव्य दश्य में विष्ण को खडी मद्रा में अंकित किया गया है। इसके पार्श्व में उत्कीर्ण ग्रंथ और तमिल के अभिलेखों में उल्लेख है कि तेवारम (भीतर अंकित देवमूर्ति के साथ मंदिर) का निर्माण चतुर्विंशति के निर्माता जैनाचार्य वसुदेव सिद्धांत-भटार ने करवाया था। पर्याप्त गहरा देवकोष्ठ, वास्तुपरक अभिरचना को भली-भाँति प्रस्तुत करता है। इसमें पार्श्वनाथ की एक कायोत्सर्ग-प्रतिमा प्रतिष्ठापित है जिसका शीर्ष पंचफणनाग-छत्र से आच्छादित है। वास्तुपरक रूप-प्रकार, प्रतिमाएँ और संबद्ध अभिलेखों की पुरालिपि के अनुसार अन्य दो प्रतिमाओं की निर्माण-तिथि सातवीं शताब्दी का उत्तरार्ध अथवा आठवीं शताब्दी का पूर्वार्ध निर्धारित की जा सकती है; अर्थात् यह तीनों पल्लव कृतियाँ हैं। आदिनाथ को समपर्यंक (पद्मासन) ध्यान-मुद्रा में अंकित किया गया है। सिर के ऊपर त्रिछत्र तथा दोनों पाश्वों में उड़ते हुए विद्याधर तथा चमरधारी अंकित हैं। महावीर की प्रतिमा भी इसी मुद्रा में अंकित की गयी है। प्राकृतिक गुफाओं के निकटवर्ती शिलाखण्डों पर, जो प्रायः सर्वत्र उपलब्ध हैं, इसी प्रकार के उथले उरेखन हैं, किन्तु पार्श्वनाथ की मूर्ति से सुशोभित मंदिर का शिल्पांकन अद्वितीय है। उत्तर अर्काट जिले के विलप्पक्कम में पंचपाण्डवमलै अथवा तिरुप्पानमले में जैन संरचनाओं से युक्त एक प्राकृतिक गुफा है। इसमें एक तिर्यक भित्ति के निर्माण के फलस्वरूप एक मोर गिरिताल बन गया है और दूसरा भाग अब मुस्लिम दरगाह के रूप में है। इनमें सर्वाधिक आकर्षक तो आठवीं से ग्याहरवीं शताब्दियों तक की पल्लव-चोल प्रतिमाएँ और अभिलेख हैं। इनमें यक्षी की एक प्रतिमा उल्लेखनीय कलाकृति है। यहाँ एक तीर्थंकर-मूर्ति शिल्पांकित है जिसके नीचे चोल-राजचिह्न चीता अंकित है। पहाडी के निचले पूर्वी भाग पर एक विशाल शैलोत्कीर्ण गुफा-मंदिर है। यद्यपि यह अनेक दृष्टियों से अपूर्ण है फिर भी अपने भारी अनगढ़ स्तंभों, पलस्तर की हुई भित्तियों और छतों से युक्त जैन मंदिर के रूप में प्रयुक्त हो रहा है । इसके अग्रभाग में छह स्तंभ और दोनों छोरों पर दो भित्ति-स्तंभ हैं। मण्डप के भीतर इन्हीं के अनुरूप स्तंभ निर्मित हैं जो इसे क्रमशः चौड़े तथा संकीर्ण अंतः एवं बाह्य भागों में विभाजित करते हैं। पृष्ठभित्ति में सात देवकुलिकाएं हैं जो सभी रिक्त हैं। गुफा-मंदिर के अग्रभाग के परनाले के निकट केंद्र में एक तीर्थंकर-मूर्ति सिद्धासन-मुद्रा में अंकित है। यह जैन अजिकाओं का एक विशाल केंद्र था। इन अजिकाओं में तिरुप्पानमलै के 1 चम्पकलक्ष्मी (आर). एन अननोटिस्ड जैन कैवर्न नियर मदुरांतकम, जर्नल ऑफ द मद्रास यूनिवर्सिटी. 41, 1-2%; 1969%; पृ 11-13. 2 श्री निवासन (के प्रार). पल्लव पाकिटेक्चर ऑफ साउथ इण्डिया. एंश्येिण्ट इण्डिया. 14; पु 129, चित्र 17. 3 श्रीनिवासन (के पार). केव टेम्पल्स प्रॉफ द पल्लवाज. पाकिटेक्चरल सर्वे ऑफ टेम्पल्स. 1.1964. पाहूयॉलॉ जिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली. पृ 94-98. 228 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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